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पहलगाम का पवित्र मंदिर: जहां माता पार्वती ने गणेश को बनाया था द्वारपाल

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जम्मू-कश्मीर का पहलगाम न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि एक प्राचीन मंदिर के लिए भी जाना जाता है, जहां माता पार्वती ने भगवान गणेश को अपने द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया था। 1625 साल पुराना यह मंदिर अमरनाथ यात्रा के रास्ते पर स्थित है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। इस मंदिर का इतिहास पौराणिक कथाओं और आस्था से भरा हुआ है, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। आइए, इस पवित्र स्थल के इतिहास और महत्व को करीब से जानते हैं।

मंदिर का पौराणिक इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने अपने स्नान के समय गोपनीयता बनाए रखने के लिए अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश की रचना की थी। उन्होंने गणेश को अपने कक्ष के द्वार पर पहरेदार के रूप में नियुक्त किया। जब भगवान शिव वहां पहुंचे, तो गणेश ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि वे शिव को नहीं पहचानते थे। क्रोधित शिव ने गणेश का सिर काट दिया, लेकिन माता पार्वती के दुख और अनुरोध पर शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेश के धड़ से जोड़कर उन्हें जीवित किया। यह घटना पहलगाम के इस मंदिर से जुड़ी मानी जाती है, जहां माता पार्वती ने गणेश को बनाया था। यह मंदिर उसी पवित्र स्थान पर स्थित है, जहां यह कथा घटी थी।

मंदिर की विशेषताएं और आस्था

पहलगाम का यह मंदिर माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा का केंद्र है। मंदिर में गणेश जी की एक प्राचीन मूर्ति स्थापित है, जिसे श्रद्धालु विघ्नहर्ता के रूप में पूजते हैं। मंदिर का परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण से भरा है, जो अमरनाथ यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर की दीवारों पर प्राचीन शिल्पकला और पौराणिक चित्र इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। हर साल गणेश चतुर्थी और अमरनाथ यात्रा के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

पहलगाम और अमरनाथ यात्रा का संबंध

पहलगाम अमरनाथ यात्रा का प्रमुख प्रवेश द्वार है, और यह मंदिर यात्रियों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। अमरनाथ गुफा की ओर जाने से पहले श्रद्धालु इस मंदिर में रुककर माता पार्वती और गणेश जी का आशीर्वाद लेते हैं। मंदिर का प्राकृतिक परिवेश, बर्फीली चोटियों और लिद्दर नदी के किनारे बसा होना इसे और भी खास बनाता है। स्थानीय लोग इसे ‘पार्वती-गणेश मंदिर’ के नाम से भी पुकारते हैं, और उनकी आस्था इस स्थान को जीवंत रखती है।

मंदिर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 4वीं शताब्दी के आसपास स्थापित हुआ था, जिसे बाद में कई राजवंशों ने संरक्षित किया। मंदिर के पास मिले प्राचीन अवशेष और शिलालेख इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं। यह स्थल हिंदू धर्म की एकता और भक्ति का प्रतीक है, जो विभिन्न समुदायों को जोड़ता है। गणेश चतुर्थी के दौरान यहां होने वाले उत्सव और भजन-कीर्तन मंदिर के सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाते हैं।

श्रद्धालुओं के लिए सलाह

यदि आप इस मंदिर के दर्शन की योजना बना रहे हैं, तो गर्मियों का मौसम सबसे उपयुक्त है, क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद हो जाते हैं। अमरनाथ यात्रा के दौरान मंदिर तक पहुंचना आसान होता है, लेकिन श्रद्धालुओं को मौसम और सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। मंदिर में सादगी से पूजा करें और स्थानीय नियमों का पालन करें। दर्शन से पहले गणेश जी की आरती और मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है।

आस्था का पवित्र केंद्र

पहलगाम का यह मंदिर माता पार्वती और भगवान गणेश की divine कथा को जीवंत रखता है। यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, इतिहास और प्रकृति का अनूठा संगम भी है। चाहे आप अमरनाथ यात्री हों या आध्यात्मिक शांति की तलाश में हों, यह मंदिर आपके दिल को छू लेगा। अपनी अगली यात्रा में इस पवित्र स्थान को जरूर शामिल करें और गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त करें। आइए, इस मंदिर की पवित्रता को बनाए रखें और इसे भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करें।

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