काठमांडू, 02 सितंबर (Udaipur Kiran) । प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर अंतिम फैसला करने के लिए नेपाल उच्चतम न्यायालय की फुल बेंच सुनवाई करेगी। अदालत ने मंगलवार को इस मामले से सम्बंधित दस्तावेज राष्ट्रपति भवन से मंगवाने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति तिल प्रसाद श्रेष्ठ और न्यायमूर्ति श्रीकांत पौडेल की पीठ ने उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञमणि न्यौपाने की दलीलों के बाद मामले को प्राथमिकता देने का आदेश दिया है। इस रिट में संवैधानिक प्रावधानों के तहत विश्वास मत नहीं लेने का तर्क देते हुए ओली सरकार को अवैध घोषित करने की मांग की गई है। साथ ही अदालत ने संसद सचिवालय से ओली सरकार से संबंधित सभी दस्तावेज भी अदालत में जमा करने को कहा है।
इससे पहले कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से सरकार को समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों की वास्तविक स्थिति से संबंधित सभी दस्तावेज अदालत में जमा करने का आदेश दिया था। अधिवक्ता वीरेन्द्र केसी ने 21 अगस्त को दायर याचिका में दावा किया है कि जेएसपी नेपाल और नागरिक उनमुक्ति पार्टी जैसे दलों के समर्थन वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री संवैधानिक रूप से अनिवार्य 30 दिनों के भीतर विश्वास मत साबित करने में विफल रहे, जिससे सरकार की वैधानिकता समाप्त हो गई है।
अधिवक्ता केसी ने बताया कि इस मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न उठाए हैं। केसी के मुताबिक कोर्ट ने सरकार के महान्याधिवकता से पूछा है कि क्या समर्थन वापस लेने के बाद सदन में विश्वास का मत नहीं लेने से सरकार की वैधानिक स्थिति क्या है? कोर्ट ने यह भी जानने का प्रयास किया है कि सिर्फ सरकार के सहभागी दल द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद ही विश्वास का मत लेने का प्रावधान है या फिर सरकार को बाहर से समर्थन देने वाले दल के भी समर्थन वापस लेने के बाद ऐसा करना अनिवार्य है?
उच्चतम न्यायालय ने महान्याधिवकता से यह भी जानना चाहा है कि क्या कोई दल सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद फिर से उस सरकार को समर्थन कर सकता है? नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के द्वारा सरकार को दिए समर्थन वापस लेने के 45 दिन के बाद दुबारा समर्थन का पत्र स्पीकर को दिया है। हालांकि पार्टी के आंतरिक विवाद में एक पक्ष ने इसका समर्थन नहीं किया है। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई फुल बेंच के सामने होगी। और इस मामले में अंतरिम आदेश नहीं सीधे अंतिम फैसला दिया जाएगा। चूंकि इस मामले में अंतरिम आदेश देने से सरकार के सामने कानूनी और वैधानिक समस्या आ जाएगी, इसलिए दोनों जजों ने अब फुल कोर्ट के जरिये इस पर अंतिम फैसला सुनाने की बात कही है।
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(Udaipur Kiran) / पंकज दास
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