Prayagraj, 03 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी मामले में विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट पुष्टिकारक साक्ष्य है. यह रिपोर्ट आरोप पत्र के साथ नहीं लगे होने से अभियुक्त को ज़मानत का अधिकार नहीं मिल जाता.
यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने NDPS ACT के मामले में आरोपी रणधीर की दूसरी जमानत याचिका खारिज करते हुए दिया है. याची को नवंबर 2024 में एक ट्रक से 151.600 किग्रा गांजा ले जाते पकड़ा गया था. इस पर उसके खिलाफ सोनभद्र के राबर्ट्सगंज थाने में मुकदमा दर्ज किया गया. दूसरी जमानत याचिका में कहा गया कि याची मजदूर है. उसका तस्करी से कोई लेना देना नहीं है. यह भी कहा गया कि एफएसएल रिपोर्ट आरोपपत्र के साथ संलग्न नहीं की गई है ऐसे में आरोपपत्र अधूरा है और अभियोजन का केस भी दूषित हो गया है.
सरकारी वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि एफएसएल रिपोर्ट से जब्त किए गए माल के गांजा होने की पुष्टि हुई है. रिपोर्ट को बाद में केस डायरी का हिस्सा बना दिया गया और सीआरपीसी की धारा 293 के तहत यह स्वीकार्य भी है. कोर्ट ने कहा कि NDPS ACT की धारा 37 के तहत जमानत तभी मंजूर की जा सकती है, जब न्यायालय को विश्वास हो जाए कि यह मानने के उचित आधार हैं कि अभियुक्त दोषी नहीं है. कोर्ट ने कहा कि जब विवेचक को अभियुक्त पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मिल जाते हैं तो एफएसएल रिपोर्ट केवल एकत्रित साक्ष्यों की पुष्टि करने वाली प्रकृति की होती है.
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे