गोरखपुर, 11 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक Indian भाषा तथा पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा है कि भाषा के बिना शिक्षा की कल्पना अधूरी है. मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान का संवहन ही Indian शिक्षा की आत्मा है.
प्रो. शुक्ल Saturday को महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़, गोरखपुर के हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी, Prayagraj के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे. “राष्ट्रीय शिक्षा नीति भाषायी संदर्भ : चुनौतियां एवं समाधान” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रो. शुक्ल ने कहा कि Indian शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने के उद्देश्य से बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति Indian भाषाओं के उन्नयन पर जोर दे रही है. इसमें मातृभाषाओं के साथ त्रिभाषा फार्मूला के उन्नयन के अनेक प्रावधान सन्निहित हैं, जो भली-भांति अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत क्रियाशील हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में बहुभाषावाद को भी प्रोत्साहित कर रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई संदर्भ पर यदि विचार करें, तो यह प्रत्येक विद्यार्थी को तीन भाषाएं सीखने को प्रेरित कर रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति वास्तव में मातृभाषा सहित बहुभाषावाद को बढ़ावा देने और Indian भाषाओं को जीवंत बनाए रखने का महनीय कार्य कर रही है. देश का शीर्ष नेतृत्व इसके लिए साधुवाद एवं प्रशंसा का पात्र है.
राष्ट्रीय संगोष्ठी में उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय, रांची के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जंगबहादुर पाण्डेय ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 केवल एक शैक्षणिक दस्तावेज नहीं, बल्कि Indian संस्कृति और भाषा की पुनर्स्थापना का माध्यम है.
विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान, दिल्ली के प्रो. धनजी ने कहा कि भाषा राष्ट्र की पहचान है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुभाषिकता की अवधारणा भारत की विविधता को एक सूत्र में बांधने का प्रयास है.
राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में स्वागत संबोधन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने किया. उन्होंने कहा कि यह महाविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों को अपनाने में आगे और संवेदनशील रहा है. इस महाविद्यालय की स्थापना ही राष्ट्रीयता के विचारों पर केंद्रित है. उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति के संबंध में भाषाई संदर्भ एक महत्वपूर्ण विषय है. इस विषय पर मंथन से निकलने वाले निष्कर्ष मार्गदर्शक होंगे. संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. आरती सिंह ने प्रस्ताविकी प्रस्तुत की.
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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय
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