राजस्थान का नाम जब भी इतिहास, शौर्य और धरोहरों की चर्चा में लिया जाता है, तो कुंभलगढ़ का नाम गौरव के साथ जुड़ जाता है। यह किला न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत का गर्व है। अपने शिल्प, मजबूती और ऐतिहासिक महत्व के कारण यह किला विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) घोषित किया जा चुका है। अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊँचाई पर बना यह किला आज भी हर पर्यटक को अपने भव्य इतिहास, अद्भुत वास्तु और रहस्यमयी रचना से चकित कर देता है।
कहाँ स्थित है कुंभलगढ़ किला?
राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कुंभलगढ़ किला, उदयपुर शहर से लगभग 82 किलोमीटर की दूरी पर है। समुद्र तल से करीब 1100 मीटर और पर्वत तल से लगभग 1914 मीटर की ऊँचाई पर बसा यह किला अरावली की खतरनाक और दुर्गम चोटियों के बीच छिपा है। यही कारण है कि इस किले को इतिहास में कभी भी शत्रु पूरी तरह जीत नहीं पाए।
राणा कुंभा की दूरदर्शिता का प्रतीक
इस किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में मेवाड़ वंश के राजा राणा कुंभा ने करवाया था। निर्माण कार्य वर्ष 1443 में शुरू हुआ और लगभग 15 वर्षों में यह किला 1458 तक बनकर तैयार हुआ। माना जाता है कि शुरुआत में निर्माण में कई बाधाएं आईं। राणा कुंभा ने एक साधु की सलाह पर मानव बलिदान देकर पुनः निर्माण शुरू करवाया। इस बलिदान की स्मृति में किले के एक द्वार के पास मंदिर भी बनाया गया।
दीवार जो चीन की ग्रेट वॉल से मिलती है टक्कर
कुंभलगढ़ की दीवार दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है, जिसकी लंबाई करीब 36 किलोमीटर और चौड़ाई लगभग 15 फीट है। कहा जाता है कि इस दीवार पर एक साथ 8 से 10 घुड़सवार आराम से चल सकते हैं। इसकी विशालता और मजबूती ही इसे एक अजेय किला बनाती है।
सुरक्षा का ऐसा इंतज़ाम कि 500 मीटर दूर से भी न दिखे
कुंभलगढ़ किला इस तरह से पर्वतीय भौगोलिक संरचना में बनाया गया है कि यह दूर से दिखता नहीं है, लेकिन इसके अंदर से पूरे इलाके पर नजर रखी जा सकती है। यही रणनीतिक योजना इस किले को अजेय बनाती है। मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक, कोई भी इसे युद्ध में नहीं जीत पाया। सिर्फ एक बार 1576 में अकबर के सेनापति शंभू खान ने जल आपूर्ति में जहर मिलाकर इसे धोखे से कब्जा किया था।
महाराणा प्रताप की जन्मस्थली
यह किला इतिहास में इसलिए भी खास है क्योंकि यहीं पर मेवाड़ के महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। इसके अलावा पन्ना धाय ने भी इसी किले में महाराणा उदय सिंह की रक्षा की थी। कुंभलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी भी रहा है।
360 मंदिरों वाला किला
कुंभलगढ़ किला सिर्फ एक सैन्य किला नहीं, बल्कि एक धार्मिक केंद्र भी रहा है। यहां कुल 360 मंदिर हैं, जिनमें से करीब 300 जैन धर्म के हैं और शेष हिंदू मंदिर। सबसे प्रमुख मंदिर राणा कुंभा द्वारा बनवाया गया नीलकंठ महादेव मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
क्या-क्या देखें कुंभलगढ़ में
राम पोल (मुख्य प्रवेश द्वार)
नीलकंठ महादेव मंदिर
बादल महल – किले का सबसे ऊँचा भाग
कटारगढ़ – किले का भीतरी और सबसे सुरक्षित हिस्सा
लाइट एंड साउंड शो – हर शाम ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाता है
कब और कैसे जाएं?
कुंभलगढ़ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है, जब मौसम सुहावना रहता है। यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट उदयपुर (64 किमी) है। रेल यात्रा के लिए फालना और उदयपुर सबसे नजदीकी स्टेशन हैं। सड़क मार्ग से भी यह जयपुर, उदयपुर, राजसमंद और नाथद्वारा जैसे शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
टिकट शुल्क: भारतीय पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क ₹40 और लाइट एंड साउंड शो का शुल्क ₹100 है। विदेशी पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क ₹600 है।
निष्कर्ष
कुंभलगढ़ किला सिर्फ पत्थरों की दीवार नहीं है, यह मेवाड़ की वीरता, रणनीति और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यदि आप इतिहास, वास्तुकला और रोमांच से जुड़े स्थलों में रुचि रखते हैं, तो कुंभलगढ़ किला आपकी यात्रा सूची में जरूर शामिल होना चाहिए। यहां की हवा में आज भी राणा कुंभा और महाराणा प्रताप के शौर्य की गूंज महसूस की जा सकती है।क्या आप कुंभलगढ़ किले की यात्रा पर गए हैं? अगर हाँ, तो आपको वहां सबसे अनोखा क्या लगा?
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