जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने एक बड़ा और कड़ा कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौते को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इस फैसले की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) की बैठक के बाद की गई। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुआ था, जिसके तहत छह नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को मिलता था।
क्या है सिंधु जल समझौता?-
हस्ताक्षरित: 19 सितंबर 1960
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हस्ताक्षरकर्ता: भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आयूब खान
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वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुआ समझौता
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नदियां शामिल: सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिम की – पाकिस्तान को), रावी, ब्यास, सतलज (पूर्व की – भारत को)
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पाकिस्तान को सिंधु जल प्रणाली से 80% पानी की आपूर्ति होती है, जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है।
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सिंधु बेसिन पाकिस्तान की 75-80% खेती का आधार है।
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प्रमुख फसलें जैसे गेहूं, चावल, कपास और गन्ना प्रभावित होंगी।
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खाद्य सुरक्षा संकट और आयात पर निर्भरता बढ़ेगी।
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विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गिरावट संभव।
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तरबेला और मंगला जैसे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स सिंधु नदी पर निर्भर हैं।
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पानी की कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे ऊर्जा संकट और बढ़ेगा।
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उद्योगों की उत्पादन क्षमता घटेगी, जिससे रोज़गार और GDP प्रभावित होंगे।
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पंजाब और सिंध प्रांत के कराची, लाहौर, मुल्तान जैसे बड़े शहरों की पानी की आपूर्ति प्रभावित होगी।
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इससे स्वास्थ्य समस्याएं, सामाजिक अस्थिरता और आर्थिक गतिविधियों में गिरावट हो सकती है।
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वर्ल्ड बैंक के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली पाकिस्तान की 25% GDP में योगदान देती है।
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समझौते के निलंबन से GDP में 25% तक गिरावट आ सकती है।
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महंगाई, गरीबी और भुखमरी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
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फसल निर्यात घटेगा, और विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट संभावित है।
भारत ने इस कदम से न केवल आतंकी हमलों के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब पाकिस्तान को भारत की सहानुभूति नहीं, बल्कि ठोस जवाब मिलेगा।
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