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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: जहां गूंजी थी पहली 'ॐ' की ध्वनि, शिव स्वयं करते हैं वास

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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: जहां गूंजी थी पहली ‘ॐ’ की ध्वनि, शिव स्वयं करते हैं वास

क्या आपने कभी सोचा है कि ‘ॐ’ की पहली ध्वनि कहां गूंजी थी? वह स्थान कौन सा है जहां ब्रह्मांड की रचना से पहले चेतना ने आकार लिया? यह कोई रहस्य नहीं, बल्कि एक जीवंत सत्य है—मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर धाम, जहां नर्मदा नदी के बीच ॐ के आकार का एक पवित्र पर्वत है। यही वह स्थल है जहां भगवान शिव स्वयंभू रूप में ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं।

जहां ब्रह्मा ने सुनी थी ‘ॐ’ की पहली ध्वनि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि की रचना होनी थी, तब भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले ‘ॐ’ की दिव्य ध्वनि सुनी और यह ध्वनि जिस बिंदु से निकली, वही स्थान आज ओंकार पर्वत कहलाता है।

राजा मांधाता की तपस्या और शिव का प्राकट्य

प्राचीन काल में भगवान श्रीराम के पूर्वज राजा मांधाता ने ओंकार पर्वत पर घोर तपस्या की थी। उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने वरदान मांगा—”हे प्रभु, आप यहीं सदा के लिए विराजमान हो जाइए।” तभी से ओंकार पर्वत पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।

यह कोई साधारण शिवलिंग नहीं, बल्कि स्वयंभू, अनादि और अनंत ज्योतिर्लिंग है।

ओंकारेश्वर: मंदिर नहीं, एक जीवित रहस्य

ओंकारेश्वर केवल एक मंदिर नहीं है। यह एक ध्यानस्थ चेतना, एक आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। यहां की हर चट्टान, हर जलधारा शिवत्व का अनुभव कराती है। सतपुड़ा और विंध्याचल की गोद में स्थित यह स्थान, नर्मदा की कल-कल ध्वनि के साथ मंत्रों की प्रतिध्वनि में लीन रहता है।

गौरी सोमनाथ मंदिर और औरंगजेब की सेना की कथा

ओंकारेश्वर के पास स्थित गौरी सोमनाथ मंदिर भी रहस्यमयी कथाओं से जुड़ा है। कहा जाता है कि यहां एक पारदर्शी शिवलिंग था, जिसमें व्यक्ति अपना भविष्य देख सकता था। औरंगजेब के सैनिकों ने जब इसमें अपना अंत देखा, तो भयभीत होकर मंदिर में आग लगा दी। इसके बाद शिवलिंग काल रूप में बदल गया।

तपस्वियों और साधकों का धाम

ओंकारेश्वर उन साधकों का भी प्रिय स्थल है जो चुपचाप यहां आकर योग, ध्यान और साधना करते हैं। यहां शिवलिंग के सामने खड़े होकर लोग आज भी अपने जीवन की उलझनों का समाधान खोजते हैं।

नर्मदा: भगवान शिव की मानस पुत्री

यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के जिस द्वीप पर स्थित है, उसे भगवान शिव की मानस पुत्री नर्मदा कहा जाता है। मान्यता है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से ही पाप कट जाते हैं, और इसी जल से जब शिवलिंग का अभिषेक होता है तो वह केवल एक पूजा नहीं, बल्कि आत्मा का संवाद बन जाता है।

अन्य रहस्यमयी स्थल

ओंकारेश्वर की परिक्रमा करते हुए कई प्राचीन मंदिर मिलते हैं:

  • पाताल हनुमान मंदिर

  • ऋण मुक्तेश्वर महादेव

  • गौरी सोमनाथ मंदिर (मामा-भांजे का मंदिर) – जहां 6 फीट ऊंचा शिवलिंग आज भी श्रद्धा का केंद्र है।

जहां श्रद्धा है, वहीं शिव हैं

ओंकारेश्वर वह स्थान है जहां न मंत्र समाप्त होते हैं, न भक्ति की लहरें। यहां जो भी सच्चे मन से शिव से मनोकामना मांगता है, उसकी हर प्रार्थना सुनी जाती है। यहां हर भक्त कुछ न कुछ छोड़कर जाता है – अपने पाप, अपने दुख, और अपने भीतर की अशांति।

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