नई दिल्ली: क्या रियल एस्टेट में तेजी का दौर थमने वाला है? क्या इस सेक्टर में क्रैश आ सकता है? क्या फ्लैट की कीमत गिरने वाली है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो रियल एस्टेट की हालिया स्थिति को स्पष्ट करते हैं। एक एक्सपर्ट ने इसे लेकर चेतावनी दी है। इनका कहना है कि रियल एस्टेट में तेजी का दौर खत्म हो सकता है। हालांकि क्रैश को लेकर इनकी राय अलग है।
इन्वेस्टमेंट बैंकर सार्थक आहूजा ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट के जरिए सवाल उठाया है कि भारत का प्रॉपर्टी मार्केट, जो पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहा था, क्या अब अपनी रफ्तार खो सकता है? उन्होंने कहा है कि भारत के रियल एस्टेट में तेजी का दौर खत्म हो सकता है, लेकिन कीमतों में गिरावट की बजाय ठहराव आने की उम्मीद है।
महंगे हुए मकानआहूजा ने सवाल उठाया है कि जब मकान इतने महंगे हो गए हैं कि आम आदमी उन्हें खरीद ही नहीं सकता, तो क्या कीमतें बढ़ती रहेंगी या फिर गिर जाएंगी? उन्होंने पिछले कुछ सालों के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि साल 2020 से भारत में मकानों की कीमतें हर साल करीब 10% बढ़ी हैं। वहीं लोगों की औसत आय में सालाना बढ़ोतरी सिर्फ 5% के आसपास ही हुई है। इस वजह से मकान खरीदना और भी मुश्किल हो गया है, खासकर मुंबई और गुड़गांव जैसे बड़े शहरों में। यहां एक आम मकान खरीदने के लिए लोगों को अपनी 20 से 30 साल की कमाई जुटानी पड़ रही है।
बिल्डर्स का मुनाफे पर ध्यानसार्थक आहूजा के मुताबिक बिल्डर्स अब ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए अल्ट्रा-लग्जरी (बहुत महंगे) प्रोजेक्ट्स पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। वे ऐसे खरीदारों को टारगेट कर रहे हैं, जिन्हें कीमतों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इसका नतीजा यह हुआ है कि सस्ते मकानों की उपलब्धता बहुत कम हो गई है। पिछले दो सालों में हैदराबाद में ऐसे मकानों की संख्या 70% कम हुई है। वहीं मुंबई में 60% और एनसीआर में 50% की गिरावट आई है।
उन्होंने यह भी बताया कि इसी दौरान भारतीय रियल एस्टेट में बड़े पैमाने पर संस्थागत निवेश (institutional investment) बढ़ा है। सिर्फ साल 2024 में ही रियल एस्टेट सेक्टर में करीब 9 अरब डॉलर का निवेश आया, जो साल 2023 के मुकाबले 50% ज्यादा है। इसमें से 63% निवेश विदेशी निवेशकों का है।
बिक्री में कमी लेकिन दाम का क्या?आहूजा के मुताबिक इतने बड़े निवेश के बावजूद पिछले छह महीनों में बिल्डर्स की बिक्री में काफी कमी आई है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि मकानों की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं और उनमें कोई गिरावट नहीं आई है। आहूजा बताते हैं कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत के हाई-एंड प्रॉपर्टी मार्केट में बहुत से मकान ऐसे लोगों के पास हैं जो उन्हें तुरंत बेचना नहीं चाहते। इनमें नॉन-रेजिडेंट इंडियंस (NRIs), विदेशी संस्थागत निवेशक (foreign institutional investors) या बहुत अमीर खरीदार शामिल हैं। इन लोगों पर बेचने का कोई दबाव नहीं है।
अब क्या है आगे का रास्ते?आहूजा ने कहा कि भारत में औसतन मकानों की कीमतें कभी गिरी नहीं हैं। मुझे उम्मीद है कि अगले 2-3 सालों तक कीमतों में ठहराव रहेगा। इसलिए इस डर से कि कीमतें बढ़ जाएंगी, घबराकर मकान खरीदने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
आहूजा का मानना है कि रियल एस्टेट में यह मंदी उन खरीदारों के लिए फायदेमंद हो सकती है जो सचमुच मकान खरीदना चाहते हैं। उन्होंने कहा काफी बिल्डर मकान की बिक्री का अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाए हैं। ऐसे में ग्राहक नया मकान खरीदने के लिए बिल्डर्स के साथ मोलभाव कर सकते हैं। और इसमें उनका पलड़ा भारी रहेगा।
इन्वेस्टमेंट बैंकर सार्थक आहूजा ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट के जरिए सवाल उठाया है कि भारत का प्रॉपर्टी मार्केट, जो पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहा था, क्या अब अपनी रफ्तार खो सकता है? उन्होंने कहा है कि भारत के रियल एस्टेट में तेजी का दौर खत्म हो सकता है, लेकिन कीमतों में गिरावट की बजाय ठहराव आने की उम्मीद है।
महंगे हुए मकानआहूजा ने सवाल उठाया है कि जब मकान इतने महंगे हो गए हैं कि आम आदमी उन्हें खरीद ही नहीं सकता, तो क्या कीमतें बढ़ती रहेंगी या फिर गिर जाएंगी? उन्होंने पिछले कुछ सालों के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि साल 2020 से भारत में मकानों की कीमतें हर साल करीब 10% बढ़ी हैं। वहीं लोगों की औसत आय में सालाना बढ़ोतरी सिर्फ 5% के आसपास ही हुई है। इस वजह से मकान खरीदना और भी मुश्किल हो गया है, खासकर मुंबई और गुड़गांव जैसे बड़े शहरों में। यहां एक आम मकान खरीदने के लिए लोगों को अपनी 20 से 30 साल की कमाई जुटानी पड़ रही है।
बिल्डर्स का मुनाफे पर ध्यानसार्थक आहूजा के मुताबिक बिल्डर्स अब ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए अल्ट्रा-लग्जरी (बहुत महंगे) प्रोजेक्ट्स पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। वे ऐसे खरीदारों को टारगेट कर रहे हैं, जिन्हें कीमतों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इसका नतीजा यह हुआ है कि सस्ते मकानों की उपलब्धता बहुत कम हो गई है। पिछले दो सालों में हैदराबाद में ऐसे मकानों की संख्या 70% कम हुई है। वहीं मुंबई में 60% और एनसीआर में 50% की गिरावट आई है।
उन्होंने यह भी बताया कि इसी दौरान भारतीय रियल एस्टेट में बड़े पैमाने पर संस्थागत निवेश (institutional investment) बढ़ा है। सिर्फ साल 2024 में ही रियल एस्टेट सेक्टर में करीब 9 अरब डॉलर का निवेश आया, जो साल 2023 के मुकाबले 50% ज्यादा है। इसमें से 63% निवेश विदेशी निवेशकों का है।
बिक्री में कमी लेकिन दाम का क्या?आहूजा के मुताबिक इतने बड़े निवेश के बावजूद पिछले छह महीनों में बिल्डर्स की बिक्री में काफी कमी आई है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि मकानों की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं और उनमें कोई गिरावट नहीं आई है। आहूजा बताते हैं कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत के हाई-एंड प्रॉपर्टी मार्केट में बहुत से मकान ऐसे लोगों के पास हैं जो उन्हें तुरंत बेचना नहीं चाहते। इनमें नॉन-रेजिडेंट इंडियंस (NRIs), विदेशी संस्थागत निवेशक (foreign institutional investors) या बहुत अमीर खरीदार शामिल हैं। इन लोगों पर बेचने का कोई दबाव नहीं है।
अब क्या है आगे का रास्ते?आहूजा ने कहा कि भारत में औसतन मकानों की कीमतें कभी गिरी नहीं हैं। मुझे उम्मीद है कि अगले 2-3 सालों तक कीमतों में ठहराव रहेगा। इसलिए इस डर से कि कीमतें बढ़ जाएंगी, घबराकर मकान खरीदने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
आहूजा का मानना है कि रियल एस्टेट में यह मंदी उन खरीदारों के लिए फायदेमंद हो सकती है जो सचमुच मकान खरीदना चाहते हैं। उन्होंने कहा काफी बिल्डर मकान की बिक्री का अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाए हैं। ऐसे में ग्राहक नया मकान खरीदने के लिए बिल्डर्स के साथ मोलभाव कर सकते हैं। और इसमें उनका पलड़ा भारी रहेगा।
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