पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद प्रशांत किशोर की एक राजनीतिक भविष्यवाणी गलत साबित हो चुकी है। उन्होंने कहा था, ' तेज प्रताप यादव राजद के टिकट पर ही चुनाव लड़ेंगे, लिख लीजिए। वे RJD से ही लड़ेंगे।' महुआ का चुनाव सम्पन्न हो चुका है। तेज प्रताप यादव अपने जनशक्ति जनता दल के चुनाव चिह्न ब्लैक बोर्ड छाप पर चुनाव लड़ चुके हैं। प्रशांत किशोर ने यह दावा बड़े अभिमान के साथ किया था जैसे कि उनमें भाग्य बांचने की परम शक्ति विद्यमान हो। वे डाटा एनालिसिस या रिसर्च मेथोडोलॉजी में माहिर हो सकते हैं, लेकिन किसी का भविष्य कैसे बता सकते हैं ? क्या अब उन्होंने ज्योतिष विद्या भी सीख ली है ? अगर भाग्य बांचने वाले ही राजनीति को संचालित करने लगेंगे तो फिर लोकतंत्र मजाक बन कर रह जाएगा। अब ऐसे में प्रशांत किशोर की बातों पर भला कौन भरोसा करेगा ?
लिख कर ले लीजिए, लिख कर ले लीजिए!
प्रशांत किशोर अक्सर अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए कहते हैं- ‘लिख कर ले लीजिए, लिख कर ले लीजिए’ उनका तकिया कलाम बन चुका है। अगर बात-बात पर वे लिखित शर्त लगाने लगेंगे तो फिर हर दम जोखिम में रहेंगे। ये अलग बात है कि कोई उनके दावों को लिखित रूप में नहीं लेता है। उनकी एक और भविष्यवाणी चर्चित है- 2025 में जदयू 25 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकेगा। पहली नजर में ये दावा या भविष्यवाणी अतिशयोक्तिपूर्ण लगती है। नीतीश कुमार के अनुभव, योग्यता और ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं है। वे बिहार के लोकप्रिय नेता है। इस चुनाव में किसी भी दल में उनकी बराबरी का कोई नेता नहीं है। तो फिर क्या उन्हें 25 या इससे कम सीटें ही मिल सकती हैं ?
अगर 25 से अधिक मिलीं तो क्या संन्यास ले लेंगे?
शर्तों की जाल में उलझ कर खुद अपना नुकसान कर रहे हैं। उन्होंने शर्त लगायी है, अगर जदयू को 25 से अधिक सीटें मिलती हैं तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। इस बात का दावा करना तो तलवार की धार पर चलने के बराबर है। अगर जदयू को 25 से अधिक सीटें आ गयीं तो क्या वे इतने छोटे कारण की वजह से राजनीति छोड़ देंगे ? तो फिर उनके उस सपने का क्या होगा जो उन्होंने बिहार को बदलने के लिए देखा है ? इस राज्य के लोग भी चाहते हैं कि बिहार देश के 10 विकसित राज्यों की सूची में शामिल हो जाए। यह काम पत्थर पर घास उगाने के बराबर है। अथक मेहनत की जरूरत होगी। लेकिन सबसे पहले तो चुनाव जीतना होगा। लेकिन खुद (पार्टी) चुनाव जीतने से अधिक वे दूसरों की हार में दिलचस्पी ले रहे हैं।
2025 में नीतीश के लिए अनुकूल स्थितियां
पहले चरण के चुनाव में जदयू के 57 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। बंपर वोटिंग से नीतीश कुमार काफी खुश हैं। 2020 में नीतीश कुमार को इसलिए कम सीटें मिलीं थीं क्योंकि चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़ कर जदयू को 25 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था। इस विपरीत परिस्थिति में भी जदयू को 15.39 फीसदी वोट मिले थे। 2025 में तो चिराग पासवान नीतीश कुमार के साथ हैं। 2025 में जदयू समेत पूरे एनडीए में आत्मविश्वास नजर आ रहा है। जातीय समीकरण के हिसाब से एनडीए का दायरा बढ़ गया है। एनडीए में ऐसी एकता पहले कभी नहीं दिखी। तो फिर किस आधार पर प्रशांत किशोर जदयू के लिए 25 या 25 से कम सीटों का दावा कर रहे हैं?
2024 में जन सुराज को 10 फीसदी वोट मिले थे2024 में बिहार विधानसभा की 4 सीटों पर उपचुनाव हुआ था। इस उपचुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। जन सुराज पार्टी को केवल 10 फीसदी वोट मिले थे। इस हार में भी तब प्रशांत किशोर ने अपने लिए जीत का तर्क खोज लिया। उन्होंने कहा था, चुनाव से एक महीना पहले बनी पार्टी को अगर 10 फीसदी वोट मिले तो यह चुनावी राजनीति के लिए बहुत बड़ी बात है।
10 फीसदी वोट और दावा 150 सीटों का
एक साल पहले जिस पार्टी को सिर्फ 10 फीसदी वोट मिले हों अगर वह अब (2025) 150 सीटें जीतने का दावा करे तो इसे कितना गंभीर माना जाएगा? राजद, भाजपा, जदयू जैसी मजबूत पार्टियां भी आज की तारीख में 150 सीटें जीतने का दावा नहीं कर सकतीं। इस हकीकत को जान कर ही ये तीनों पार्टियां 150 से कम सीटों पर चुनाव लड़ती हैं। लेकिन प्रशांत किशोर कह रहे है कि उनका पार्टी या तो 150 सीटें जीतेंगी या फिर 10 से कम। इस दावे में उन्होंने अपने लिए एक सेफ पैसेज निकाल रखा है, ताकि नतीजे खराब हों तो वे इसका बचाव कर सकें। लेकिन अगर जन सुराज को 10 से अधिक और 20 से कम सीटें मिलीं तो प्रशांत किशोर एक बार फिर गलत साबित हो जाएंगे।
लिख कर ले लीजिए, लिख कर ले लीजिए!
प्रशांत किशोर अक्सर अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए कहते हैं- ‘लिख कर ले लीजिए, लिख कर ले लीजिए’ उनका तकिया कलाम बन चुका है। अगर बात-बात पर वे लिखित शर्त लगाने लगेंगे तो फिर हर दम जोखिम में रहेंगे। ये अलग बात है कि कोई उनके दावों को लिखित रूप में नहीं लेता है। उनकी एक और भविष्यवाणी चर्चित है- 2025 में जदयू 25 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकेगा। पहली नजर में ये दावा या भविष्यवाणी अतिशयोक्तिपूर्ण लगती है। नीतीश कुमार के अनुभव, योग्यता और ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं है। वे बिहार के लोकप्रिय नेता है। इस चुनाव में किसी भी दल में उनकी बराबरी का कोई नेता नहीं है। तो फिर क्या उन्हें 25 या इससे कम सीटें ही मिल सकती हैं ?
अगर 25 से अधिक मिलीं तो क्या संन्यास ले लेंगे?
शर्तों की जाल में उलझ कर खुद अपना नुकसान कर रहे हैं। उन्होंने शर्त लगायी है, अगर जदयू को 25 से अधिक सीटें मिलती हैं तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। इस बात का दावा करना तो तलवार की धार पर चलने के बराबर है। अगर जदयू को 25 से अधिक सीटें आ गयीं तो क्या वे इतने छोटे कारण की वजह से राजनीति छोड़ देंगे ? तो फिर उनके उस सपने का क्या होगा जो उन्होंने बिहार को बदलने के लिए देखा है ? इस राज्य के लोग भी चाहते हैं कि बिहार देश के 10 विकसित राज्यों की सूची में शामिल हो जाए। यह काम पत्थर पर घास उगाने के बराबर है। अथक मेहनत की जरूरत होगी। लेकिन सबसे पहले तो चुनाव जीतना होगा। लेकिन खुद (पार्टी) चुनाव जीतने से अधिक वे दूसरों की हार में दिलचस्पी ले रहे हैं।
2025 में नीतीश के लिए अनुकूल स्थितियां
पहले चरण के चुनाव में जदयू के 57 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। बंपर वोटिंग से नीतीश कुमार काफी खुश हैं। 2020 में नीतीश कुमार को इसलिए कम सीटें मिलीं थीं क्योंकि चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़ कर जदयू को 25 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था। इस विपरीत परिस्थिति में भी जदयू को 15.39 फीसदी वोट मिले थे। 2025 में तो चिराग पासवान नीतीश कुमार के साथ हैं। 2025 में जदयू समेत पूरे एनडीए में आत्मविश्वास नजर आ रहा है। जातीय समीकरण के हिसाब से एनडीए का दायरा बढ़ गया है। एनडीए में ऐसी एकता पहले कभी नहीं दिखी। तो फिर किस आधार पर प्रशांत किशोर जदयू के लिए 25 या 25 से कम सीटों का दावा कर रहे हैं?
2024 में जन सुराज को 10 फीसदी वोट मिले थे2024 में बिहार विधानसभा की 4 सीटों पर उपचुनाव हुआ था। इस उपचुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। जन सुराज पार्टी को केवल 10 फीसदी वोट मिले थे। इस हार में भी तब प्रशांत किशोर ने अपने लिए जीत का तर्क खोज लिया। उन्होंने कहा था, चुनाव से एक महीना पहले बनी पार्टी को अगर 10 फीसदी वोट मिले तो यह चुनावी राजनीति के लिए बहुत बड़ी बात है।
10 फीसदी वोट और दावा 150 सीटों का
एक साल पहले जिस पार्टी को सिर्फ 10 फीसदी वोट मिले हों अगर वह अब (2025) 150 सीटें जीतने का दावा करे तो इसे कितना गंभीर माना जाएगा? राजद, भाजपा, जदयू जैसी मजबूत पार्टियां भी आज की तारीख में 150 सीटें जीतने का दावा नहीं कर सकतीं। इस हकीकत को जान कर ही ये तीनों पार्टियां 150 से कम सीटों पर चुनाव लड़ती हैं। लेकिन प्रशांत किशोर कह रहे है कि उनका पार्टी या तो 150 सीटें जीतेंगी या फिर 10 से कम। इस दावे में उन्होंने अपने लिए एक सेफ पैसेज निकाल रखा है, ताकि नतीजे खराब हों तो वे इसका बचाव कर सकें। लेकिन अगर जन सुराज को 10 से अधिक और 20 से कम सीटें मिलीं तो प्रशांत किशोर एक बार फिर गलत साबित हो जाएंगे।
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