देव पक्षी अरुण के पुत्र थे जटायु
बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि गिद्धराज जटायु देव पक्षी अरुण के पुत्र थे। अरुण के भाई गुरुढ़ भगवान थे। ऋषि ताक्षर्य कश्यप और विनीता नाम की स्त्री से दो पुत्र गरूड़ और अरुण थे। गरुड जी भगवान विष्णु की शरण में चले गए जबकि अरुणजी सूर्यदेव के सारथी बने। इस कारण से गिद्धराज जटायु भी दिव्य थे।
राजा दशरथ के मित्र थे जटायु

रामायण की कथा के अनुसार गिद्धराज जटायु राजा दशरथ के मित्र थे। उस समय जटायु नासिक के पंचवटी के वन में रहा करते थे। एक दिन आखेट के समय गिद्धराज जटायु की मुलाकात सबसे पहले राजा दशरथ से हुई थी। इसके बाद बहुत वर्ष बीतने के बाद जब श्रीराम पंचवटी के वन में कुटिया बनाकर रहते थे, तो गिद्धराज जटायु का परिचय श्रीराम से हुआ था।
जटाशंकर नामक स्थान पर तपस्या करते थे गिद्धराज जटायु
गिद्धराज जटायु के बारे में उल्लेख किया गया है कि मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में 'जटाशंकर' नाम का स्थान है। वहां पर गिद्धराज जटायु तपस्या किया करते थे। जटाशंकर नामक स्थान को ऋषि-मुनियों की तपोभूमि कहा जाता है। इस स्थान को जटाशंकर इसलिए कहा जाता है क्योंकि माना जाता है कि पहाड़ के ऊपर से जलधारा इस तरह नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिरती हुई लगती है, जैसे भगवान शिव की जटाओं से गंगाधारा निकल रही हो।
श्रीराम ने किया था गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार

रामायण की कथा के अनुसार गिद्धराज जटायु ऐसे पहले योद्धा थे जिन्होंने सीता जी के हरण के दौरान सबसे पहले रावण के साथ युद्ध किया था। अपने साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए गिद्धराज जटायु ने एक भले काम के लिए अपने प्राण त्याग दिए। जब रावण लंका जाते समय दंडकारण्य वन की ओर बढ़ रहा था, तो जटायु ने रावण को रोकने की कोशिश की थी। इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीता की खोज में दंडकारण्य वन की ओर पहुंचे, तो उन्हें गिद्धराज जटायु घायल अवस्था में मिले। उन्होंने राम जी को माता सीता के हरण के बारे में बताया। इसके बाद गिद्धराज जटायु ने प्राण त्याग दिए। जिसके बाद श्रीराम ने जटायु का अंतिम संस्कार और पिंडदान किया।
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