शादी की उम्र होते है मन में एक सवाल आने लगता है कि शादी कैसे होगी। क्या प्रेम विवाह होगा या पारंपरिक विवाह यानी माता पिता और परिवार की पसंद से विवाह होगा। शास्त्र में बताया गया है कि विवाह ऐसा विषय है जिसका उत्तर कुंडली में छुपा होता है क्योंकि किसके साथ किसकी जोड़ी बनेगी यह ईश्वर जन्म के साथ ही तय करके भेजता है। इसलिए विवाह और वैवाहिक जीवन का सुख ईश्वर के विधान पर निर्भर करता है। लेकिन ज्योतिषशास्त्र के चश्मे के देखा जाए तो यह काफी हद तक मालूम किया जा सकता है कि शादी कैसे होगी।
ज्योतिषशास्त्र में कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का भाव कहा गया है। सप्तम भाव और सप्तम भाव के स्वामी की स्थिति से विवाह के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। तो आइए जानते हें कि आपकी कुंडली में प्रेम विवाह का योग बना है या नहीं। कैसे होगी आपकी शादी।
प्रेम विवाह के लिए पंचम और सप्तम भाव का संबंध
ज्योतिषशास्त्र में विवाह के लिए जहां सप्तम भाव को प्रमुखता दी जाती है वहीं प्रेम संबंध के लिए पंचम भाव को देखा जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और जब पंचम भाव के स्वामी और सप्तम भाव के स्वामी के बीच किसी प्रकार का संबंध बनता है तो प्रेम विवाह होने का योग प्रबल हो जाता है। पंचम भाव के स्वामी और सप्तम भाव के स्वामी एक साथ एक राशि में विराजमान हों। या एक दूसरे की राशि में बैठे हों या फिर एक दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम विवाह की स्थिति कुंडली में मजबूत हो जाती है।
प्रेम विवाह में राहु की भूमिका प्रबल
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि राहु परंपरा से हटकर काम करने की प्रेरणा देता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु किसी की कुंडली में पंचम या सप्तम भाव में हो और उस पर शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो या राहु शुक्र के साथ बैठा हो तो इस बात की संभावना बहुत बढ जाती है कि व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है। पंचम और सप्तम भाव में राहु का संबंध अगर शु्क्र और मंगल के साथ भी हो जाए तो बात और भी आगे बढ जाती है। व्यक्ति प्रेम विवाह में जाति का बंधन भी तोड़ सकता है और परंपरा से हटकर कोई बड़ा फैसला लेते हुए प्रेम विवाह कर सकता है।
प्रेम विवाह में शुक्र की भूमिका
ज्योतिषशास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रेम और आकर्षण का कारक ग्रह माना गया है। ऐसे में प्रम विवाह के लिए शुक्र की भूमिका सबसे प्रमुख रूप में जरूरी है। ऐसा देखा जाता है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र और मंगल ग्रह साथ में किसी भाव में बैठे हों और खास तौर पर लग्न, पंचम या सप्तम भाव में विराजमान हों तो व्यक्ति पारंपरिक विवाह में नहीं जाता है। ऐसा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है।
प्रेम विवाह में बाधा दूर करने के उपाय
ज्योतिषशास्त्र में कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का भाव कहा गया है। सप्तम भाव और सप्तम भाव के स्वामी की स्थिति से विवाह के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। तो आइए जानते हें कि आपकी कुंडली में प्रेम विवाह का योग बना है या नहीं। कैसे होगी आपकी शादी।
प्रेम विवाह के लिए पंचम और सप्तम भाव का संबंध
ज्योतिषशास्त्र में विवाह के लिए जहां सप्तम भाव को प्रमुखता दी जाती है वहीं प्रेम संबंध के लिए पंचम भाव को देखा जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और जब पंचम भाव के स्वामी और सप्तम भाव के स्वामी के बीच किसी प्रकार का संबंध बनता है तो प्रेम विवाह होने का योग प्रबल हो जाता है। पंचम भाव के स्वामी और सप्तम भाव के स्वामी एक साथ एक राशि में विराजमान हों। या एक दूसरे की राशि में बैठे हों या फिर एक दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम विवाह की स्थिति कुंडली में मजबूत हो जाती है।
प्रेम विवाह में राहु की भूमिका प्रबल
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि राहु परंपरा से हटकर काम करने की प्रेरणा देता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु किसी की कुंडली में पंचम या सप्तम भाव में हो और उस पर शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो या राहु शुक्र के साथ बैठा हो तो इस बात की संभावना बहुत बढ जाती है कि व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है। पंचम और सप्तम भाव में राहु का संबंध अगर शु्क्र और मंगल के साथ भी हो जाए तो बात और भी आगे बढ जाती है। व्यक्ति प्रेम विवाह में जाति का बंधन भी तोड़ सकता है और परंपरा से हटकर कोई बड़ा फैसला लेते हुए प्रेम विवाह कर सकता है।
प्रेम विवाह में शुक्र की भूमिका
ज्योतिषशास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रेम और आकर्षण का कारक ग्रह माना गया है। ऐसे में प्रम विवाह के लिए शुक्र की भूमिका सबसे प्रमुख रूप में जरूरी है। ऐसा देखा जाता है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र और मंगल ग्रह साथ में किसी भाव में बैठे हों और खास तौर पर लग्न, पंचम या सप्तम भाव में विराजमान हों तो व्यक्ति पारंपरिक विवाह में नहीं जाता है। ऐसा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है।
प्रेम विवाह में बाधा दूर करने के उपाय
- शुक्रवार के दिन शुक्र के मंत्र ओम द्रां द्रीं दौं सः शुक्राय नमः मंत्र का जप करे।
- भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की उपासना करें और गोरोचन का तिलक लगाएं।
- पूर्णिमा तिथि को दूध से चंद्रमा को अर्घ्य दें।
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