मुंबई    : 26/11 आतंकी हमले के हैंडलर अबू जुंदाल का मुकदमा सात साल से भी ज़्यादा समय बाद फिर से शुरू होने वाला है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक विशेष अदालत के 2018 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अधिकारियों को गिरफ्तारी से संबंधित गोपनीय दस्तावेज़ अभियुक्तों को सौंपने के लिए कहा गया था। इस निर्देश के कारण 2018 से कार्यवाही प्रभावी रूप से रुकी हुई थी। प्रक्रियागत पेचीदगियों के कारण यह मुकदमा लगभग सात साल से अटका हुआ था।   
   
हाईकोर्ट ने 2018 के एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार और जेट एयरवेज को जुंदाल के यात्रा और आव्रजन दस्तावेज साझा करने का निर्देश दिया गया था। न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि मांगी गई सामग्री विशेषाधिकार प्राप्त है और उसके बचाव के लिए आवश्यक नहीं है। इस आदेश को दिल्ली पुलिस, विदेश मंत्रालय (MEA) और केंद्रीय एजेंसियों ने चुनौती दी थी। वहीं 2018 से कार्यवाही प्रभावी रूप से रुकी हुई थी।
     
निचली अदालत के फैसले को बताया गलतन्यायमूर्ति आर.एन. लड्ढा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निचली अदालत ने मुकदमे के गुण-दोष से असंबंधित दस्तावेज़ पेश करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 91 का प्रयोग करके 'पूरी तरह से गलत दिशा' अपनाई है। न्यायाधीश ने कहा कि धारा 91 अभियुक्त या अदालत को गिरफ्तारी स्थल की काल्पनिक जांच शुरू करने का अधिकार नहीं देती, जब ऐसी जांच का न्यायनिर्णयन से कोई तर्कसंगत संबंध न हो।
      
हाई कोर्ट ने जताई चिंताइस आदेश से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक प्रमुख आतंकवादी सैयद ज़बीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल के खिलाफ लंबे समय से लंबित अभियोजन का रास्ता साफ हो गया है। अबू पर 26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के मास्टरमाइंडों में से एक होने का आरोप है। हाई कोर्ट ने देरी की निंदा की, समय पर न्याय पर ज़ोर दिया। हाई कोर्ट ने चिंता जताई कि 2018 के आदेश ने मामले को वर्षों तक अधर में लटकाए रखा।
   
सरकार की दलीलकेंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि अबू जुंदाल कोई मामूली व्यक्ति नहीं, बल्कि एक प्रमुख साज़िशकर्ता था। उसने कराची से वीओआईपी के ज़रिए रणनीतिक जानकारी दी, हमलावरों को प्रशिक्षित किया और परिचालन निगरानी बनाए रखी। आलोचना आदेश के कारण 2018 से मुकदमा स्थगित है। गंभीर अपराधों में न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए समय पर सुनवाई ज़रूरी है।
   
अबू जुंदाल की दलीलविवाद के केंद्र में जुंदाल का यह दावा था कि उसे सऊदी अरब से जबरन भारत लाया गया था, न कि औपचारिक रूप से निर्वासित किया गया था। उसने अपने दावे के समर्थन में उड़ान विवरण, यात्री सूची और संबंधित दस्तावेज मांगे थे। दिल्ली पुलिस और विदेश मंत्रालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि ये दस्तावेज गोपनीय हैं और इन्हें सार्वजनिक करने से राजनयिक संबंध और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
   
कौन हैं अबू जुंदालसरकार के रुख से सहमत होते हुए हाई कोर्ट ने विशेष अदालत में सुनवाई फिर से शुरू करने का रास्ता साफ़ कर दिया। महाराष्ट्र के बीड ज़िले के मूल निवासी जुंदाल पर 2008 के मुंबई हमलों में एक प्रमुख भारतीय कड़ी होने का आरोप है। जांचकर्ताओं का आरोप है कि वह कराची स्थित उस कंट्रोल रूम का हिस्सा था जिसने हमले का निर्देशन किया था। उसने अजमल कसाब और अन्य को मुंबई के लहजे में हिंदी बोलने और शहर के प्रमुख स्थलों पर घूमने की ट्रेनिंग दी थी।
   
वर्षों तक फरार रहने के बाद, जुंदाल को सऊदी अरब में हिरासत में लिया गया और 2012 में भारत आने पर दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। बाद में उसे मुंबई पुलिस को सौंप दिया गया, जिसने उसे साजिश के मास्टरमाइंडों में से एक बताते हुए एक अलग आरोपपत्र दायर किया।
  
हाईकोर्ट ने 2018 के एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सरकार और जेट एयरवेज को जुंदाल के यात्रा और आव्रजन दस्तावेज साझा करने का निर्देश दिया गया था। न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि मांगी गई सामग्री विशेषाधिकार प्राप्त है और उसके बचाव के लिए आवश्यक नहीं है। इस आदेश को दिल्ली पुलिस, विदेश मंत्रालय (MEA) और केंद्रीय एजेंसियों ने चुनौती दी थी। वहीं 2018 से कार्यवाही प्रभावी रूप से रुकी हुई थी।
निचली अदालत के फैसले को बताया गलतन्यायमूर्ति आर.एन. लड्ढा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निचली अदालत ने मुकदमे के गुण-दोष से असंबंधित दस्तावेज़ पेश करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 91 का प्रयोग करके 'पूरी तरह से गलत दिशा' अपनाई है। न्यायाधीश ने कहा कि धारा 91 अभियुक्त या अदालत को गिरफ्तारी स्थल की काल्पनिक जांच शुरू करने का अधिकार नहीं देती, जब ऐसी जांच का न्यायनिर्णयन से कोई तर्कसंगत संबंध न हो।
हाई कोर्ट ने जताई चिंताइस आदेश से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक प्रमुख आतंकवादी सैयद ज़बीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल के खिलाफ लंबे समय से लंबित अभियोजन का रास्ता साफ हो गया है। अबू पर 26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के मास्टरमाइंडों में से एक होने का आरोप है। हाई कोर्ट ने देरी की निंदा की, समय पर न्याय पर ज़ोर दिया। हाई कोर्ट ने चिंता जताई कि 2018 के आदेश ने मामले को वर्षों तक अधर में लटकाए रखा।
सरकार की दलीलकेंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि अबू जुंदाल कोई मामूली व्यक्ति नहीं, बल्कि एक प्रमुख साज़िशकर्ता था। उसने कराची से वीओआईपी के ज़रिए रणनीतिक जानकारी दी, हमलावरों को प्रशिक्षित किया और परिचालन निगरानी बनाए रखी। आलोचना आदेश के कारण 2018 से मुकदमा स्थगित है। गंभीर अपराधों में न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए समय पर सुनवाई ज़रूरी है।
अबू जुंदाल की दलीलविवाद के केंद्र में जुंदाल का यह दावा था कि उसे सऊदी अरब से जबरन भारत लाया गया था, न कि औपचारिक रूप से निर्वासित किया गया था। उसने अपने दावे के समर्थन में उड़ान विवरण, यात्री सूची और संबंधित दस्तावेज मांगे थे। दिल्ली पुलिस और विदेश मंत्रालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि ये दस्तावेज गोपनीय हैं और इन्हें सार्वजनिक करने से राजनयिक संबंध और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
कौन हैं अबू जुंदालसरकार के रुख से सहमत होते हुए हाई कोर्ट ने विशेष अदालत में सुनवाई फिर से शुरू करने का रास्ता साफ़ कर दिया। महाराष्ट्र के बीड ज़िले के मूल निवासी जुंदाल पर 2008 के मुंबई हमलों में एक प्रमुख भारतीय कड़ी होने का आरोप है। जांचकर्ताओं का आरोप है कि वह कराची स्थित उस कंट्रोल रूम का हिस्सा था जिसने हमले का निर्देशन किया था। उसने अजमल कसाब और अन्य को मुंबई के लहजे में हिंदी बोलने और शहर के प्रमुख स्थलों पर घूमने की ट्रेनिंग दी थी।
वर्षों तक फरार रहने के बाद, जुंदाल को सऊदी अरब में हिरासत में लिया गया और 2012 में भारत आने पर दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। बाद में उसे मुंबई पुलिस को सौंप दिया गया, जिसने उसे साजिश के मास्टरमाइंडों में से एक बताते हुए एक अलग आरोपपत्र दायर किया।
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