उज्जैन: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद के विध्वंस को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। यह मस्जिद महाकाल मंदिर परिसर के लिए पार्किंग सुविधा के विस्तार हेतु मप्र सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि पर बनी थी और इसी साल जनवरी में गिरा दी गई थी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि भूमि अधिग्रहण पूरा हो चुका है और मुआवजा भी दिया जा चुका है। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने स्वयं ही अधिग्रहण को चुनौती देने वाली पिछली याचिका वापस ले ली थी।
कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों पर जांच की मांग
न्यायमूर्ति नाथ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की 'अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ताओं मोहम्मद तैयब और 12 अन्य लोगों ने दावा किया कि मस्जिद 1985 से वक्फ संपत्ति थी और वे वहां नमाज अदा करते थे। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा मस्जिद के पुनर्निर्माण के निर्देश और उज्जैन के जिला कलेक्टर तथा भूमि अधिग्रहण अधिकारी के खिलाफ जांच की भी मांग की थी।
कोर्ट में दिए गए तर्क
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एम.आर. शमशाद ने प्रस्तुत किया कि मस्जिद को 'एक अन्य धार्मिक स्थल' के लिए पार्किंग स्थान बनाने हेतु ध्वस्त कर दिया गया था। उन्होंने उच्च न्यायालय के इस विचार का विरोध किया कि याचिकाकर्ता बस कहीं और प्रार्थना कर सकते हैं। मुआवजे के भुगतान के संबंध में, शमशाद ने दावा किया कि यह 'अनधिकृत व्यक्तियों' को दिया गया था। पीठ ने हालांकि कहा कि इस मुद्दे को अलग से संबोधित करने के लिए कानूनी उपाय उपलब्ध हैं।
महाकाल मंदिर पार्किंग के लिए गिराई
उज्जैन शहर में स्थित तकिया मस्जिद के विध्वंस से संबंधित है। यह मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी बताई जा रही थी। मस्जिद को गिराने का निर्णय मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लिया गया था। भूमि अधिग्रहण का उद्देश्य महाकाल मंदिर परिसर के लिए पार्किंग सुविधा का विस्तार करना था। यह भूमि जिस पर मस्जिद स्थित थी, उसे इसी उद्देश्य के लिए अधिग्रहित किया गया था।
जनवरी में टूटी थी मस्जिद
मस्जिद का विध्वंस इसी वर्ष जनवरी माह में किया गया था। इसके बाद इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने की। पीठ ने इस मामले में पहले से ही उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को बरकरार रखा।
कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों पर जांच की मांग
न्यायमूर्ति नाथ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की 'अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ताओं मोहम्मद तैयब और 12 अन्य लोगों ने दावा किया कि मस्जिद 1985 से वक्फ संपत्ति थी और वे वहां नमाज अदा करते थे। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा मस्जिद के पुनर्निर्माण के निर्देश और उज्जैन के जिला कलेक्टर तथा भूमि अधिग्रहण अधिकारी के खिलाफ जांच की भी मांग की थी।
कोर्ट में दिए गए तर्क
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एम.आर. शमशाद ने प्रस्तुत किया कि मस्जिद को 'एक अन्य धार्मिक स्थल' के लिए पार्किंग स्थान बनाने हेतु ध्वस्त कर दिया गया था। उन्होंने उच्च न्यायालय के इस विचार का विरोध किया कि याचिकाकर्ता बस कहीं और प्रार्थना कर सकते हैं। मुआवजे के भुगतान के संबंध में, शमशाद ने दावा किया कि यह 'अनधिकृत व्यक्तियों' को दिया गया था। पीठ ने हालांकि कहा कि इस मुद्दे को अलग से संबोधित करने के लिए कानूनी उपाय उपलब्ध हैं।
महाकाल मंदिर पार्किंग के लिए गिराई
उज्जैन शहर में स्थित तकिया मस्जिद के विध्वंस से संबंधित है। यह मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी बताई जा रही थी। मस्जिद को गिराने का निर्णय मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लिया गया था। भूमि अधिग्रहण का उद्देश्य महाकाल मंदिर परिसर के लिए पार्किंग सुविधा का विस्तार करना था। यह भूमि जिस पर मस्जिद स्थित थी, उसे इसी उद्देश्य के लिए अधिग्रहित किया गया था।
जनवरी में टूटी थी मस्जिद
मस्जिद का विध्वंस इसी वर्ष जनवरी माह में किया गया था। इसके बाद इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने की। पीठ ने इस मामले में पहले से ही उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को बरकरार रखा।
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