पटना : दानापुर विधानसभा का चुनावी जंग काफी रोचक और निर्णायक मोड पर चला गया है। दानापुर विधानसभा का चुनाव एक अलग प्लेटफार्म पर लड़े जाने को ले कर भी काफी चर्चा में है। दरअसल, दानापुर का चुनावी जंग केवल पार्टियों, उम्मीदवारों के चयन का नहीं बल्कि यह तो जनता का भी लिटमस टेस्ट है कि उसे बाहुबली जनप्रतिनिधि चाहिए या फिर जनता के बीच रहने वाला जनप्रतिनिधि? चलिए जानते है क्या चल रहा है दानापुर विधानसभा के चुनावी जंग में।
कौन कितना प्रभावी! दानापुर विधानसभा पर कांग्रेस, राजद और बीजेपी का प्रभाव रहा है। प्रारंभ से ही बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस पांच- पांच बार दानापुर से चुनाव जीत चुकी हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी 1995 और 2000 विधानसभा चुनाव भी जीत चुके हैं। बीजेपी पहली बार 1996 में चुनाव जीती थी जब विजय यादव उम्मीदवार थे। इनके बाद लगातार 2005 से 2015 तक चार बार आशा देवी दानापुर से जीती। वर्ष 2020 विधानसभा के चुनाव में रीतलाल यादव ने आशा देवी को हरा दिया था।इस बार चुनावी जंग में बीजेपी ने पूर्व सांसद रामकृपाल यादव को चुनावी जंग में उतारा है। वही राजद ने अपने सीटिंग विधायक रीतलाल यादव को उतारा है।
क्या है मतों की ताकत?
दानापुर विधानसभा 2025 के चुनाव में इस सीट पर करीब 3,74,193 मतदाता हैं। इस सीट पर जातीय समीकरण इस बार भी चुनाव की दिशा तय करेंगे। यहां यादव 90 हजार, वैश्य मतदाता भी लगभग 70 हजार हैं। एससी 30 हजार और मुस्लिम मतदाता लगभग 18 हजार हैं। सवर्ण के भी लगभग 50 हजार मत है। कुर्मी भी 8 हजार के आसपास हैं। इसके अलावा भी कई छोटी- छोटी जातीय चुनाव को प्रभावित करती हैं।
निर्णायक फैक्टर
मौजूदा समय में चुनावी टक्कर बीजेपी के रामकृपाल यादव और आरजेडी के रीतलाल यादव से है। राजद के आधार वोट मुस्लिम और यादव के हैं। यादव जाति से रहने के कारण इस जाति में रामकृपाल यादव सेंधमारी कर सकते हैं। बीजेपी का आधार वोट वैश्य और सवर्ण हैं। निर्णायक स्थिति में यहां के दलित और कुर्मी मतदाता हैं। एक दूसरा बड़ा फैक्टर भीतरघात का है। रामकृपाल यादव को टिकट मिलने से स्थानीय नेता में काफी बेचैनी है। आशा देवी को ले कर जब बदलाव की बात आई तो बीजेपी ने स्थानीय स्तर पर कई नेताओं में चुनावी स्किल विकसित करने की कोशिश भी की थी।।पर पूर्व सांसद रामकृपाल यादव को उतारने के बाद इन नेताओं में थोड़ी नाराजगी भी थी। पर डैमेज कंट्रोल के तहत अमित शाह का एक्शन में आना लाभकारी हो सकता है। भीतरघात का मसला तो राजद उम्मीदवार रीतलाल यादव के साथ भी है। भीतरघात का मसला जिसने सुलझा लिया जीत उसके साथ रहेगी।
कौन कितना प्रभावी! दानापुर विधानसभा पर कांग्रेस, राजद और बीजेपी का प्रभाव रहा है। प्रारंभ से ही बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस पांच- पांच बार दानापुर से चुनाव जीत चुकी हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी 1995 और 2000 विधानसभा चुनाव भी जीत चुके हैं। बीजेपी पहली बार 1996 में चुनाव जीती थी जब विजय यादव उम्मीदवार थे। इनके बाद लगातार 2005 से 2015 तक चार बार आशा देवी दानापुर से जीती। वर्ष 2020 विधानसभा के चुनाव में रीतलाल यादव ने आशा देवी को हरा दिया था।इस बार चुनावी जंग में बीजेपी ने पूर्व सांसद रामकृपाल यादव को चुनावी जंग में उतारा है। वही राजद ने अपने सीटिंग विधायक रीतलाल यादव को उतारा है।
क्या है मतों की ताकत?
दानापुर विधानसभा 2025 के चुनाव में इस सीट पर करीब 3,74,193 मतदाता हैं। इस सीट पर जातीय समीकरण इस बार भी चुनाव की दिशा तय करेंगे। यहां यादव 90 हजार, वैश्य मतदाता भी लगभग 70 हजार हैं। एससी 30 हजार और मुस्लिम मतदाता लगभग 18 हजार हैं। सवर्ण के भी लगभग 50 हजार मत है। कुर्मी भी 8 हजार के आसपास हैं। इसके अलावा भी कई छोटी- छोटी जातीय चुनाव को प्रभावित करती हैं।
निर्णायक फैक्टर
मौजूदा समय में चुनावी टक्कर बीजेपी के रामकृपाल यादव और आरजेडी के रीतलाल यादव से है। राजद के आधार वोट मुस्लिम और यादव के हैं। यादव जाति से रहने के कारण इस जाति में रामकृपाल यादव सेंधमारी कर सकते हैं। बीजेपी का आधार वोट वैश्य और सवर्ण हैं। निर्णायक स्थिति में यहां के दलित और कुर्मी मतदाता हैं। एक दूसरा बड़ा फैक्टर भीतरघात का है। रामकृपाल यादव को टिकट मिलने से स्थानीय नेता में काफी बेचैनी है। आशा देवी को ले कर जब बदलाव की बात आई तो बीजेपी ने स्थानीय स्तर पर कई नेताओं में चुनावी स्किल विकसित करने की कोशिश भी की थी।।पर पूर्व सांसद रामकृपाल यादव को उतारने के बाद इन नेताओं में थोड़ी नाराजगी भी थी। पर डैमेज कंट्रोल के तहत अमित शाह का एक्शन में आना लाभकारी हो सकता है। भीतरघात का मसला तो राजद उम्मीदवार रीतलाल यादव के साथ भी है। भीतरघात का मसला जिसने सुलझा लिया जीत उसके साथ रहेगी।
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