राजा जनमेजय ने वेद व्यास जी से पूछा कि भविष्य में जो घटनाएं होना तय हैं, जिसे होनी कहा जाता है, क्या उन्हें टाला जा सकता है। इस पर वेद व्यास जी ने कहा, ‘होनी होकर रहती है, होनी को बदलने में मनुष्य असमर्थ है, यदि राजन, तुम्हें शंका है तो तुम अपने बुद्धि बल की परीक्षा कर लो, होनी के आगे तुम कुछ भी न कर सकोगे और होनी होकर रहेगी। आज से ठीक पांच वर्ष के बाद तुम गर्मियों में शिकार खेलने जंगल में जाओगे, हम तुमको भविष्यवाणी के रूप में आगाह कर रहे हैं कि उस दिन तुम शिकार खेलने न जाना, परन्तु क्योंकि होनी को टाला नहीं जा सकता है, तुम अवश्य उस दिन शिकार खेलने जाओगे। अगर तुम शिकार खेलने चले भी गए तो काले रंग के घोड़े पर बैठकर मत जाना, परन्तु होनी के चलते तुम अवश्य ही काले घोड़े पर बैठकर शिकार खेलने जाओगे।   
   
इस पर भी अपनी रक्षा के लिए तुम दक्षिण दिशा की ओर मत जाना किन्तु होनी तुम्हें दक्षिण दिशा की ओर ही ले जाएगी, भविष्यवाणी कर्ता ने फिर कहा, चलो यदि दक्षिण दिशा में भी चले जाओ तो समुद्र किनारे मत जाना किन्तु होनी प्रबल होती है, तुम अवश्य जाओगे। इस पर भी यदि समुद्र के किनारे चले जाओ तो वहां तुम्हें जो सुन्दरी मिले, उस पर मुग्ध होकर उसे अपने साथ मत लाना, परन्तु तुम उस पर मुग्ध होकर उसे अपने साथ अवश्य लाओगे। ये सब होनी ही कराती है, यदि तुम उस स्त्री को ले भी आओ, तो उससे विवाह मत करना, उसे पटरानी न बनाना और यदि पटरानी बना भी लो, तो उसके कहने पर यज्ञ न करना, यदि तुम यज्ञ भी करो, तो युवा पंडितों को न बुलाना और यदि बुला भी लो तो रानी के कहने पर उन्हें प्राण दंड न देना। परन्तु मैं कितना भी सचेत करूं, ये सब तुम अवश्य करोगे, क्योंकि होनी ने ये सब तुमसे ही कराना है।
     
हमने तुम्हें पहले ही बता दिया है, यदि इस होनी को टाल सकते हो तो प्रयत्न करके देख लेना।’ राजा ने कहा, ‘महाराज! ठीक है, मैंने इन सब बातों को सुन लिया, मैं इन बातों को होने नहीं दूंगा।’ पांच वर्ष बाद होनी के आगे राजा की बुद्धि, विवेक, सब धरा-का-धरा रह गया। यद्यपि उसने सर्वदा शिकार न खेलने का निर्णय किया था, परन्तु होनी और भविष्यवाणी के अनुसार ठीक पांच वर्ष बाद उसके चित्त में शिकार का विचार अचानक आ ही गया और एक दिन यह इच्छा इतनी प्रबल हो गई कि उसने सोचा, ‘आज चाहें कुछ भी हो, शिकार करने अवश्य जाऊंगा।’ इस प्रकार होनी होती चली गई, राजा जनमेजय को पहले ही व्यास जी ने भविष्यवाणी के रूप में सब बताया था, इस पर भी वे होनी के हाथ की कठपुतली बन गए और जो होना लिखा था, वही हुआ। उन्होंने अपनी पटरानी के कहने पर युवा पंडितों को प्राण दण्ड दिया जिसके कारण उन्हें कोढ़ हो गया और यही उनकी मृत्यु का कारण बना।
  
इस पर भी अपनी रक्षा के लिए तुम दक्षिण दिशा की ओर मत जाना किन्तु होनी तुम्हें दक्षिण दिशा की ओर ही ले जाएगी, भविष्यवाणी कर्ता ने फिर कहा, चलो यदि दक्षिण दिशा में भी चले जाओ तो समुद्र किनारे मत जाना किन्तु होनी प्रबल होती है, तुम अवश्य जाओगे। इस पर भी यदि समुद्र के किनारे चले जाओ तो वहां तुम्हें जो सुन्दरी मिले, उस पर मुग्ध होकर उसे अपने साथ मत लाना, परन्तु तुम उस पर मुग्ध होकर उसे अपने साथ अवश्य लाओगे। ये सब होनी ही कराती है, यदि तुम उस स्त्री को ले भी आओ, तो उससे विवाह मत करना, उसे पटरानी न बनाना और यदि पटरानी बना भी लो, तो उसके कहने पर यज्ञ न करना, यदि तुम यज्ञ भी करो, तो युवा पंडितों को न बुलाना और यदि बुला भी लो तो रानी के कहने पर उन्हें प्राण दंड न देना। परन्तु मैं कितना भी सचेत करूं, ये सब तुम अवश्य करोगे, क्योंकि होनी ने ये सब तुमसे ही कराना है।
हमने तुम्हें पहले ही बता दिया है, यदि इस होनी को टाल सकते हो तो प्रयत्न करके देख लेना।’ राजा ने कहा, ‘महाराज! ठीक है, मैंने इन सब बातों को सुन लिया, मैं इन बातों को होने नहीं दूंगा।’ पांच वर्ष बाद होनी के आगे राजा की बुद्धि, विवेक, सब धरा-का-धरा रह गया। यद्यपि उसने सर्वदा शिकार न खेलने का निर्णय किया था, परन्तु होनी और भविष्यवाणी के अनुसार ठीक पांच वर्ष बाद उसके चित्त में शिकार का विचार अचानक आ ही गया और एक दिन यह इच्छा इतनी प्रबल हो गई कि उसने सोचा, ‘आज चाहें कुछ भी हो, शिकार करने अवश्य जाऊंगा।’ इस प्रकार होनी होती चली गई, राजा जनमेजय को पहले ही व्यास जी ने भविष्यवाणी के रूप में सब बताया था, इस पर भी वे होनी के हाथ की कठपुतली बन गए और जो होना लिखा था, वही हुआ। उन्होंने अपनी पटरानी के कहने पर युवा पंडितों को प्राण दण्ड दिया जिसके कारण उन्हें कोढ़ हो गया और यही उनकी मृत्यु का कारण बना।
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