वाराणसी, 21 अप्रैल . “काश्यां हि काशते काशी सर्वप्रकाशिका…” शिवनगरी कहें या धर्म नगरी, काशी अपनी अल्हड़ता और खूबसूरती से लोगों को मोहित करती आई है. ऐसा ही हैरत में डालने वाला और मोहित करने वाला एक चमत्कारी कुंड है… लोलार्क कुंड. इस कुंड की महिमा अपरंपार है, जहां संतान के लिए तरस रही सूनी गोद तो भरती ही है, साथ ही चर्म रोग से मुक्ति भी मिलती है.
घाटों के शहर काशी के भदैनी क्षेत्र स्थित लोलार्क कुंड देखने में जितना खूबसूरत है, उतना ही इसका पौराणिक महत्व भी है. बाबा झोली भरिहें… इसी विश्वास के साथ हर साल इस कुंड में स्नान करने के लिए लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है. संतान की प्राप्ति के लिए लोग लोलार्क छठ मेले में जुटते हैं. गजब का दृश्य बनता है, जहां लोग केवल “जय लोलार्क बाबा, जय लोलार्क बाबा” का नारा लगाते हैं और रात भर कतार में लगे रहते हैं.
मान्यता है कि सूर्य की पहली किरण सबसे पहले कुंड पर ही पड़ती है. कुंड के दक्षिण भाग में लोलार्केश्वर महादेव का मंदिर है.
इस बारे में काशी के ज्योतिषाचार्य, यज्ञाचार्य एवं वैदिक कर्मकांडी पं. रत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि मंदिर के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. यहां गढ़वाल नरेश ने अपनी सातों रानियों के साथ स्नान किया, जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई थी. उन्होंने कुंड का निर्माण 9वीं शताब्दी में करवाया था. वहीं, अहिल्याबाई होलकर ने कुंड का पुनरुद्धार कराया था.
काशी के निवासी प्रभुनाथ त्रिपाठी ने बताया कि चमत्कारी मंदिर और कुंड में लोगों की विशेष आस्था है. यहां पर साल भर लोग दर्शन-पूजन और अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. हालांकि, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देश भर के कोने-कोने से लोग स्नान के लिए आते हैं. लोलार्क कुंड में तीज से ही नहान शुरू हो जाता है और षष्ठी तक चलता है.
उन्होंने आगे बताया, “कुंड के बारे में कहा जाता है कि यहां पर महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का कुंडल गिरा था, जिस वजह से यहां पर गड्ढा हो गया. यहां के जल को अमृत माना जाता है.
एक किंवदंती यह भी है कि एक राजा जिन्हें चर्म रोग था और वैद्य से इलाज करवाने के बावजूद उनका रोग ठीक नहीं हो रहा था, इस रास्ते से गुजरने के दौरान उन्हें प्यास लगी और उन्होंने भिश्ती (पानी ढोने वाले) से पानी लाने को कहा. भिश्ती को आस-पास कोई जगह नहीं दिखी सो गड्ढे से पानी भर लाया और राजा को पिला दिया. पानी पीने के बाद राजा का चर्म रोग ठीक हो गया.
मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना के साथ सच्चे मन और श्रद्धा के साथ कुंड में दंपति स्नान करते हैं और कुंड में संकल्प के साथ सीताफल और अन्य सामान छोड़ते हैं. जब उनकी कामना पूरी हो जाती है तो वे अपने बच्चे का यहां पर मुंडन संस्कार करवाते हैं और हलवा-पूरी बाबा को प्रसाद स्वरूप चढ़ाते हैं. कुंड में उतरने के लिए उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीनों दिशाओं में लंबी-लंबी सीढ़ियां हैं और पूर्व दिशा की ओर दीवार है.
–
एमटी/केआर
The post first appeared on .
You may also like
अमित अग्रवाल को मिली डॉक्टरेट की उपाधि
पोप फ्रांसिस के निधन पर प्रदेश कांग्रेस ने जताया शोक
वाराणसी: सब्जियों पर शोध में निजी क्षेत्र की भागीदारी होगी, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में हुई चर्चा
29 वर्ष पूर्व मुरादाबाद में रेलवे लाइन पर बना क्षतिग्रस्त कपूर कंपनी पुल टूटना शुरू
अयोध्या: अमानीगंज पहुंची चौरासी कोसी परिक्रमा