New Delhi, 23 अगस्त . डीबी देवधर को ‘भारतीय क्रिकेट के ग्रैंड ओल्ड मैन’ कहा जाता है. देवधर ने भारतीय क्रिकेट को मजबूत आधार देने में अहम भूमिका निभाई और रणजी ट्रॉफी के विकास में भी अहम योगदान दिया.
14 जनवरी 1982 को पूना में जन्मे दिनकर बलवंत देवधर एसपी कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर थे, जिन्हें क्रिकेट का शौक भी था. देवधर ने 1911/12 में अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत की.
देवधर को 1930 के दशक में महाराष्ट्र को एक प्रमुख प्रथम श्रेणी टीम के रूप में स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है.
देवधर जितने आक्रामक बल्लेबाज थे, उतने ही सीधे-सादे कप्तान भी थे. उन्होंने साल 1939 से 1941 तक महाराष्ट्र रणजी टीम का नेतृत्व किया.
साल 1932 में जब भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला, तब देवधर देश के दिग्गज बल्लेबाजों में शुमार थे, लेकिन उस वक्त उनकी उम्र 40 साल हो चुकी थी. ऐसे में उन्हें भारतीय टीम के लिहाज से ‘बूढ़ा’ माना गया और यह क्रिकेटर कभी टीम इंडिया के लिए नहीं खेल सका.
साल 1932 में सीके नायडू की कप्तानी वाली जिस टीम ने टेस्ट क्रिकेट में अपना पहला कदम रखा, उनके आइडल डीबी देवधर ही थे.
भले ही 40 की उम्र में देवधर को टीम इंडिया के लिए नजरअंदाज किया गया, लेकिन 49 की उम्र में उन्होंने 246 रन की पारी खेलते हुए आलोचकों को करारा जवाब दिया.
डीबी देवधर ने 1947/48 तक फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला. इस दौरान 81 मुकाबलों की 133 पारियों में उनके बल्ले से 39.32 की औसत के साथ 4,522 रन निकले. उन्होंने 9 शतक और 10 अर्धशतक जमाए. इसके साथ ही 11 विकेट भी हासिल किए.
करीब 50 की उम्र में भी डीबी देवधर फिटनेस के मामले में युवा खिलाड़ियों को पछाड़ते थे.
क्रिकेट से रिटायरमेंट के बाद देवधर ने पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया. साल 1946 में जब टीम इंडिया, इंग्लैंड के दौरे पर गई, तो देवधर बतौर खेल पत्रकार उस दौरे पर थे. साल 1947 में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भी देवधर वहां मौजूद थे.
घरेलू क्रिकेट में उनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए साल 1973 में ‘डीबी देवधर ट्रॉफी’ की शुरुआत की गई.
देवधर ने क्रिकेट प्रशासक के रूप में भी काम किया. वह बीसीसीआई उपाध्यक्ष के अलावा, महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने राष्ट्रीय चयनकर्ता का पद भी संभाला.
साल 1965 में डीबी देवधर को ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जबकि साल 1991 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ से नवाजा गया. 24 अगस्त 1993 को 101 वर्ष की आयु में भारत के इस महानतम बल्लेबाज ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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आरएसजी
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