मां दुर्गा Image Credit source: AI
दुर्गा मूर्ति विसर्जन के नियम: शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा करने के बाद दशमी तिथि पर मूर्ति विसर्जन का आयोजन किया जाता है। इसे विजयादशमी भी कहा जाता है, जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। इस दिन भक्तजन मां दुर्गा को भावुक विदाई देते हैं और मूर्ति के साथ कलश का विसर्जन भी महत्वपूर्ण होता है। आइए जानते हैं विसर्जन के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और कलश विसर्जन की विधि क्या है।
मूर्ति विसर्जन का महत्वनवरात्र के दौरान भक्त अपने घर या पंडाल में मां दुर्गा की स्थापना कर नौ दिनों तक पूजा करते हैं। दशमी को मान्यता है कि मां दुर्गा कैलाश पर्वत की ओर लौटती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देकर विदा होती हैं। मूर्ति विसर्जन इस बात का प्रतीक है कि देवी अपने धाम लौट रही हैं और भक्त अगले वर्ष फिर से उनकी स्थापना करेंगे।
मूर्ति विसर्जन के समय ध्यान रखने योग्य बातेंखंडित मूर्ति का विसर्जन: यदि मूर्ति में कोई खंडित भाग है, तो उसका विसर्जन भी सम्मानपूर्वक करना चाहिए।
अखंड ज्योति को बुझाना: नवरात्रि में जलाई गई अखंड ज्योति को विसर्जन से पहले स्वयं नहीं बुझाना चाहिए। पूजा समाप्त होने पर उसकी बत्ती को सुरक्षित रख लें। बचा हुआ तेल या घी अगली पूजा में उपयोग किया जा सकता है।
मां से क्षमा याचना: विसर्जन से पहले मां दुर्गा की षोडशोपचार पूजा करें और उनसे किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें। यह अनिवार्य है। विसर्जन के समय इस मंत्र का उच्चारण करें।
कलश विसर्जन का महत्वमूर्ति स्थापना के साथ कलश (घट) की स्थापना भी की जाती है, जिसे देवी का प्रतीक माना जाता है। इसमें नारियल, आम या अशोक के पत्ते और जल भरा होता है। नवरात्रि के दौरान यह कलश माता की ऊर्जा और शक्ति का केंद्र माना जाता है।
कलश विसर्जन की विधिमूर्ति विसर्जन से पहले कलश की पूजा करें। कलश में रखे जल को घर के तुलसी के पौधे या किसी पवित्र स्थान पर छिड़कें। नारियल और पत्तियों को विसर्जन स्थल पर प्रवाहित करें। कलश को गंगाजल से शुद्ध कर घर में रखा जा सकता है, इसे शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यतामान्यता है कि यदि मूर्ति और कलश विसर्जन के नियमों का पालन सही तरीके से किया जाए तो घर में सुख-समृद्धि, शांति और शक्ति बनी रहती है। साथ ही, मां दुर्गा भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और परिवार को बुराई और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रखती हैं।
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