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आचार्य चाणक्य की शिक्षाएँ: स्त्री और धन का महत्व

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भारत का ज्ञान और आचार्य चाणक्य

भारत हमेशा से ज्ञान का केंद्र रहा है, जहाँ अनेक विद्वानों ने जन्म लिया है। प्राचीन काल से लेकर आज तक, यहाँ ज्ञान की कोई कमी नहीं रही है। वर्तमान में भी भारतीय लोग अपने ज्ञान के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। ज्ञान आज के युग में सफलता की कुंजी है। जब ज्ञान की चर्चा होती है, तो आचार्य चाणक्य का नाम सबसे पहले आता है। चाणक्य एक महान विद्वान थे, जिन्होंने अपने जीवन में अपार ज्ञान अर्जित किया और इसे समाज के कल्याण के लिए एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया।


चाणक्य का ज्ञान और योगदान

आचार्य चाणक्य ने कई विषयों में गहरी जानकारी हासिल की थी, जैसे नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर चंद्रगुप्त जैसे साधारण व्यक्ति को एक महान सम्राट बनाया। चंद्रगुप्त के मंत्री के रूप में, चाणक्य ने उन्हें महत्वपूर्ण सलाह दी।


चाणक्य की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ

चाणक्य ने बताई हैं कुछ ख़ास बातें:



आचार्य चाणक्य ने कई ऐसी बातें कही हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाएँ जीवन में कठिनाइयों से बचने में मदद करती हैं। चाणक्य नीति के पहले अध्याय के छठे श्लोक में उन्होंने स्त्री और धन के महत्व पर विचार किया है।


चाणक्य का श्लोक और उसका अर्थ श्लोक:
आपदार्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत अापदः ।
कदाचिच्चलते लक्ष्मीःसंचितोऽपिविनश्यति
अर्थ:

चाणक्य ने कहा है कि धन की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि यह संकट के समय सहायक होता है। लेकिन जब स्त्री और धन में से किसी एक को चुनने की बात आती है, तो स्त्री को प्राथमिकता देनी चाहिए। धर्म और संस्कारों के साथ, स्त्री परिवार की रक्षा करती है। बिना स्त्री के, धर्म-कर्म अधूरे माने जाते हैं। आत्मा की रक्षा के लिए, धन और स्त्री दोनों के मोह को छोड़कर अध्यात्म की ओर बढ़ना चाहिए।


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