एक संत अपने शिष्यों के साथ धर्म से जुड़ी बातों को लेकर चर्चा कर रहे थे। इसी बीच एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि गुरुदेव ग्रंथों में लिखा है कि ईश्वर हर जगह है, अगर यह बात सच है तो वह हमें दिखाई क्यों नहीं देते। हम कैसे मान लें कि ईश्वर सचमुच में हैं और अगर वो है तो हम उन्हें कैसे प्राप्त कर सकते हैं। इसके बाद संत ने अपने दूसरे शिष्य से एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक मंगवाया।
शिष्य तुरंत ही नमक और पानी लेकर आ गया। वहां मौजूद सभी शिष्य यही सोच रहे थे कि नमक-पानी और भगवान का क्या संबंध है। लेकिन सभी अपने गुरु की ओर चुपचाप देख रहे थे। गुरु ने शिष्य से कहा कि नमक को इस पानी में मिला दो। शिष्य ने वैसा ही किया।
संत ने शिष्यों से कहा कि क्या तुम्हें इस पानी में नमक दिख रहा है। शिष्यों ने लोटे में देखा और कहा कि नहीं। इसके बाद उन्होंने कहा कि तुम इस पानी को चखो। शिष्यों ने जब पानी चखा तो उनको पानी का स्वाद खारा लगा। सभी शिष्य बोले कि पानी में नमक का स्वाद आ रहा है। इसके बाद संत ने कहा कि अब इस पानी को उबालो।
शिष्यों ने पानी उबाला और जब लोटे का पानी भाप बनकर उड़ गया तो संत ने कहा कि अब इस लोटे में देखो, तुम्हे क्या दिख रहा है। शिष्यों ने लोटे में देखा तो लोटे में नमक के कण दिखाई दे रहे थे। गुरु ने शिष्यों की बात सुनकर कहा कि आप सबने पानी में नमक के स्वाद का अनुभव किया। लेकिन किसी को भी पानी में नमक नहीं दिख रहा था।
ठीक उसी तरह ईश्वर भी हर जगह मौजूद है। लेकिन हमें दिखाई नहीं देता। हम उन्हें केवल महसूस कर सकते हैं। जैसे पानी को गर्म करने के बाद नमक के कण दिखने लगे, उसी तरह अगर हम ध्यान, भक्ति और तप करते हैं तो हमें भगवान के दर्शन हो सकते हैं।
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