-विनोद बंसल
राजस्थान विधानसभा में पारित “राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2025” को समाज के व्यापक वर्गों ने स्वागत योग्य और ऐतिहासिक बताया है। यह विधेयक न केवल अवैध धर्मांतरण पर सख्त अंकुश लगाने वाला है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सामाजिक समरसता की रक्षा का सशक्त साधन भी बनेगा। लंबे समय से समाज में यह मांग उठ रही थी कि धर्म की स्वतंत्रता के नाम पर चल रहे सुनियोजित षड्यंत्रों पर लगाम कसने के लिए कठोर कानून बनाया जाए। राजस्थान ने इस दिशा में जो कदम उठाया है, वह देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बनेगा।
भारत एक लोकतांत्रिक और पंथ निरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ हर नागरिक को अपनी आस्था और पूजा-पद्धति का पालन करने की स्वतंत्रता है। किंतु यह स्वतंत्रता तभी तक सार्थक है जब तक इसका दुरुपयोग न हो। विगत कुछ दशकों में कई बार यह देखने को मिला कि समाज के वंचित वर्गों विशेषकर नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति-जनजाति और गरीबों को लालच, प्रलोभन, छल या दबाव के जरिए धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया गया। कट्टरपंथी इस्लाम और ईसाइयत इसके केंद्र में है, ये आरोप और साक्ष्य बार-बार सामने आते रहे हैं। वहीं, विदेशी फंडिंग से चलने वाले संगठनों पर भी ऐसी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।
राजस्थान जैसे सीमावर्ती और जनजातीय इलाकों वाले राज्यों में यह समस्या और अधिक गंभीर रूप ले चुकी थी। परिणामस्वरूप जनभावनाएँ बार-बार कठोर कानून की मांग कर रही थीं। फरवरी 2025 में प्रस्तुत प्रारंभिक विधेयक की तुलना में वर्तमान संस्करण कहीं अधिक कठोर और प्रभावी है।
इस विधेयक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें धर्मांतरण कराने वालों को अब हल्की सजाओं के बजाय कठोरतम दंड भुगतना होगा। जबरन, धोखे या लालच से कराए गए धर्मांतरण पर अब सात से चौदह वर्ष तक की कैद और पाँच लाख रुपये तक का जुर्माना निर्धारित किया गया है। नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति/जनजाति और दिव्यांगजनों का धर्मांतरण कराने पर दस से बीस वर्ष की कैद और दस लाख रुपये तक का दंड विधान है। सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में तो बीस वर्ष से आजीवन कारावास तथा न्यूनतम पच्चीस लाख रुपये का दंड अनिवार्य होगा। विदेशी फंडिंग से कराए गए धर्मांतरण पर भी दोषी को दस से बीस वर्ष की सजा और बीस लाख रुपये तक का दंड भुगतना होगा।
सबसे कठोर प्रावधान पुनरावृत्ति के मामलों में है। यदि कोई अपराधी बार-बार धर्मांतरण की साजिश करता पकड़ा गया तो उसे आजीवन कारावास और पचास लाख रुपये तक का दंड भोगना होगा। स्पष्ट है कि अब अवैध धर्मांतरण करने वालों के लिए बच निकलने की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी। विधेयक में विवाह के माध्यम से किए गए धर्मांतरण को भी अवैध घोषित किया गया है। सामान्य तैर पर यह देखा जाता है कि विवाह को साधन बनाकर धर्मांतरण कराए जाते हैं। यह प्रावधान ऐसे प्रपंचों को रोकने में सहायक होगा। साथ ही धर्मांतरण कराने वाली संस्थाओं की संपत्ति जब्त करने और आवश्यक होने पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्त करने का भी प्रावधान पहली बार जोड़ा गया है। यह कदम अपराधियों में भय पैदा करेगा और संगठित षड्यंत्रों की जड़ें काट देगा।
विधेयक के अनुसार धर्म परिवर्तन करने से पूर्व व्यक्ति को 90 दिन पहले जिला कलेक्टर या एडीएम को सूचना देना अनिवार्य होगा। धर्माचार्यों को भी दो महीने पूर्व नोटिस देना होगा। इस पारदर्शिता से प्रशासन को पूरी प्रक्रिया पर निगरानी रखने में आसानी होगी। वहीं, ‘घर वापसी’ यानी पूर्वजों के धर्म में लौटने को धर्मांतरण नहीं माना जाएगा। इससे समाज में भ्रम और विवाद की स्थितियों को रोका जा सकेगा। सभी अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती घोषित किया गया है। इसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है और अदालत से आसानी से जमानत नहीं मिलेगी। यह सख्ती विधेयक को प्रभावी बनाने में निर्णायक सिद्ध होगी।
इसके बाद हम राजस्थान को लेकर यही उम्मीद करते हैं कि इस कानून से समाज के कमजोर और वंचित वर्गों को सबसे अधिक राहत मिलेगी। अब उन्हें लालच या दबाव से धर्म परिवर्तन कराने वाले संगठनों से सुरक्षा मिलेगी। विदेशों से आने वाले संदिग्ध फंड पर भी अंकुश लगेगा। सामूहिक धर्मांतरण जैसी गतिविधियों पर रोक लगने से समाज में कृत्रिम विभाजन की प्रक्रिया रुकेगी और सामाजिक समरसता को बल मिलेगा। साथ ही यह कानून भारतीय सनातन संस्कृति की रक्षा में एक ढाल का काम करेगा। यह केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता की दृष्टि से भी अनिवार्य है।
विधेयक का सबसे चर्चित पहलू बुलडोजर एक्शन है। यदि कोई संस्था सुनियोजित तरीके से धर्मांतरण कराती है तो उसकी संपत्ति जब्त करने और भवनों को ध्वस्त करने का प्रावधान अपराधियों में भय पैदा करेगा। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने धर्मांतरण जैसी गतिविधि को रोकने के लिए इतने कठोर उपायों को अपनाया है। इससे यह संदेश जाएगा कि समाज और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा।
विश्व हिन्दू परिषद की भूमिका
हमारे संतों और मनीषियों ने कहा है कि धर्मांतरण एक अभिशाप है। इससे न सिर्फ एक हिन्दू कम होता है अपितु भारत के शत्रु बढ़ जाते है। गत कालखंड में ही पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देश और उनमें बढ़ती अमानवीय, देश विरोधी व धर्म-द्रोही घटनाओं से सम्पूर्ण विश्व भली भांति परिचित है। उन सब के पीछे धर्मांतरण का खेल ही है। विश्व हिन्दू परिषद के तो जन्म के प्रमुख कारणों में से एक ‘अवैध धर्मांतरण’ ही है। इसे रोकने के लिए अनेक देशव्यापी अभियान संगठन चला रहा है। संगठन के द्वारा अब तक 40 लाख से अधिक हिंदुओं को धर्मांतरण से बचाने का कार्य हुआ है। वहीं 9 लाख से अधिक की घर-वापसी भी कराई जा चुकी है। लगभग 25 हजार हिन्दू बेटियों को लव जिहाद चंगुल से बचाने का कार्य भी किया जा चुका है।
विहिप की यह पुरानी मांग थी कि राज्य में एक कठोर कानून बने। राजस्थान सरकार ने इसे स्वीकार कर समाज की आवाज को कानूनी रूप दिया है। संगठन के अनवरत प्रयासों व हिन्दू समाज की संगठित शक्ति का ही परिणाम है कि आज देश के दर्जन भर राज्यों में इसके लिए कठोर कानून बने हैं। अब धीरे-धीरे यह मांग भी बलवती हो रही है कि इसके लिए संसद में भी एक कठोरतम कानून बने जिससे माँ भारती का कोई हिस्सा इस अभिशाप का शिकार ना बन सके।
साधुवाद सरकार
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उनकी सरकार ने जो साहसिक कदम उठाया है, वह निश्चित ही जन-भावनाओं का सम्मान है और इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। हालांकि कुछ वर्ग इस कानून की आलोचना करेंगे। वे इसे कठोर या धार्मिक स्वतंत्रता का हनन कह सकते हैं। किंतु यह समझना आवश्यक है कि यह कानून स्वेच्छा से किए गए धर्म परिवर्तन का विरोध नहीं करता। संविधान ने अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी है, लेकिन यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन है। जबरन या छल-कपट से किया गया धर्म परिवर्तन न तो धार्मिक स्वतंत्रता है और न ही संवैधानिक अधिकार। यह सीधा-सीधा शोषण है और यही इस विधेयक का लक्ष्य है कि शोषण पर रोक लगे।
अंत में यही कहना है कि “राजस्थान विधिविरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2025” केवल एक कानून नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा और संस्कृति की रक्षा का संकल्प है। यह अवैध धर्मांतरण की जड़ों को काटकर सामाजिक एकता और राष्ट्रीय अखंडता को सुदृढ़ करेगा। आने वाले समय में यह विधेयक राजस्थान ही नहीं, पूरे देश में एक आदर्श बनेगा। आज आवश्यकता है कि समाज के सभी वर्ग इस कानून का समर्थन करें और एकजुट होकर उन ताकतों का प्रतिकार करें जो छल-कपट से समाज को बाँटने की कोशिश करती हैं। यह विधेयक वास्तव में जनभावनाओं का प्रतिबिंब और सनातन संस्कृति की रक्षा का ऐतिहासिक कदम है।
(लेखक विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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