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अमावस्या 2025 का आध्यात्मिक महत्व और इसकी विशेषताएं

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अमावस्या, जिसे चंद्रहीन रात्रि के रूप में जाना जाता है, हिंदू पंचांग की वह तिथि है जब आकाश में चंद्रमा पूर्णतः अदृश्य रहता है। संस्कृत में “अ” का अर्थ है “नहीं”, “मा” चंद्रमा का नाम है, और “वस्या” का अर्थ है “वास करना”। इस प्रकार, अमावस्या का शाब्दिक अर्थ है – “चंद्रमा का आकाश में वास न होना”।

भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से हिंदू धर्म में अमावस्या को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। कई धार्मिक अनुष्ठान, व्रत और पर्व विशेष रूप से इसी तिथि पर संपन्न होते हैं। दीपावली जैसा बड़ा पर्व भी कार्तिक मास की अमावस्या को ही मनाया जाता है।

अगली अमावस्या की तिथि और समय
  • तिथि: 27 अप्रैल 2025, रविवार

  • अमावस्या प्रारंभ: 27 अप्रैल, सुबह 4:50 बजे

  • अमावस्या समाप्ति: 28 अप्रैल, रात 1:01 बजे

  • चंद्रोदय: 27 अप्रैल, सुबह 5:15 बजे

  • चंद्रास्त: 27 अप्रैल, शाम 6:32 बजे

  • मास: वैशाख अमावस्या

इसके बाद की अमावस्या 27 मई 2025, मंगलवार को आएगी।

धार्मिक दृष्टिकोण से अमावस्या का महत्व

अमावस्या तिथि को पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और श्राद्ध कर्मों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है। इस दिन लोग पूजा-पाठ, व्रत, तर्पण और दान के माध्यम से अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

प्रमुख अमावस्या पर्व और व्रत
  • मौनी अमावस्या

  • शनि जयंती

  • वट सावित्री व्रत

  • भौमवती अमावस्या

  • लक्ष्मी पूजा (दीपावली)

  • हरियाली अमावस्या

  • महालय अमावस्या (पितृ पक्ष)

सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व

जब अमावस्या सोमवार को आती है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, कृष्णा या कावेरी में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। अनेक श्रद्धालु हरिद्वार, वाराणसी जैसे तीर्थ स्थलों में एकत्र होकर पूजा, व्रत, स्नान और दान के माध्यम से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।

अमावस्या की यह तिथि न केवल आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करती है, बल्कि आस्था, श्रद्धा और पारिवारिक संस्कारों को सुदृढ़ करने का माध्यम भी बनती है।

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