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मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत का कफ़ सिरप से क्या है नाता, एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

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BBC मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में अब तक 11 बच्चों की मौत हुई है. इनमें से एक अदनान के माता-पिता

बीते एक महीने में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 11 और राजस्थान में तीन बच्चों की मौत के बाद दोनों राज्यों में बाल स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं.

इन बच्चों के परिवार का कहना है कि कफ़ सिरप पीने के बाद बच्चों का स्वास्थ्य तेज़ी से बिगड़ा और उन्हें बचाया नहीं जा सका.

मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोल विभाग ने शनिवार सुबह तमिलनाडु में बनने वाली कोल्ड्रिफ़ कफ़ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया है. तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल विभाग की 2 अक्तूबर की रिपोर्ट के अनुसार कोल्ड्रिफ़ सिरप के बैच एस आर-13 को 'मिलावटी' घोषित किया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक़, सिरप में 48.6 प्रतिशत डायथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया, जो ज़हरीला रसायन है और सेहत के लिए घातक साबित हो सकता है. यह कफ़ सिरप तमिलनाडु स्थित श्रीसन फ़ार्मास्युटिकल कंपनी बनाती है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने एक्स पर लिखा, "छिंदवाड़ा में कोल्ड्रिफ़ सिरप के कारण हुई बच्चों की मृत्यु अत्यंत दुखद है. इस सिरप की बिक्री को पूरे मध्य प्रदेश में बैन कर दिया है. सिरप को बनाने वाली कंपनी के अन्य प्रोडक्ट की बिक्री पर भी बैन लगाया जा रहा है."

पवन नंदुरकर छिंदवाड़ा ज़िला अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ हैं.

उन्होंने पत्रकारों को बताया, "ज़्यादातर बच्चों की मौत किडनी इंजरी से हुई थी. बच्चों की रीनल बायोप्सी जांच के बाद यह पता चला था कि किसी तरह के टॉक्सिन (ज़हरीला पदार्थ) के कारण किडनी को चोट पहुंची और उसने काम करना बंद कर दिया जिसके बाद बच्चों की मौत हुई. इनमें ज़्यादातर बच्चों की मेडिकल हिस्ट्री में कफ़ सिरप दिए जाने की बात सामने आई थी."

छिंदवाड़ा ज़िले के रहने वाले यासीन ख़ान का चार साल का बेटा उसैद अब इस दुनिया में नहीं है.

बीबीसी से फ़ोन पर बातचीत में यासीन ने कहा, "मुझे सुबह से शाम अब कुछ सूझता नहीं है. उसे 25 अगस्त को पहली बार हल्की सर्दी, खांसी और बुखार आया था. 13 सितंबर को किडनी के ख़राब हो जाने से उसैद की मौत हो गई. मेरी आंख का तारा इस दुनिया से चला गया."

यह कहते हुए यासीन फ़ोन पर ही रो पड़े.

दरअसल, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले में 7 सितंबर से 2 अक्तूबर के बीच कुल 11 बच्चों की किडनी ख़राब होने से मौत हो चुकी है. अब भी कम से कम पांच बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है.

image BBC राजस्थान में भी सामने आए मामले

मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान में भी कथित तौर पर सरकारी अस्पताल से मिली कफ़ सिरप पीने के बाद भरतपुर और झुंझुनू ज़िलों में दो बच्चों की मौत हुई है. शनिवार को चुरू ज़िले से भी एक बच्चे की मौत की ख़बर सामने आई है. यह आरोप मृत बच्चों के परिजनों ने लगाया है.

चुरू के छह साल के बच्चे की जयपुर के जेके लोन अस्पताल में मौत हुई. परिजनों का कहना है कि बच्चे को चार दिन पहले कफ़ सिरप दी गई थी, जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने पर उसे जयपुर रेफ़र किया गया था.

भरतपुर के दो साल के बच्चे को जयपुर रेफ़र किया गया था, यहां उसकी तीन दिन बाद मौत हो गई. जबकि, झुंझुनू के रहने वाले पांच साल के बच्चे को इलाज के लिए सीकर रेफ़र किया गया था. यहां इलाज के दौरान उसकी भी मौत हो गई.

मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर दिनेश कुमार मौर्य ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "हमारी लगातार केंद्रीय ड्रग टेस्टिंग एजेंसी से बात हो रही है. हमने 12 सैंपल लिए थे और केंद्रीय ड्रग टेस्टिंग एजेंसी ने छह सैंपल लिए थे. अब तक हमारे तीन सैंपल और केंद्रीय ड्रग टेस्टिंग लैब द्वारा लिए गए सभी छह सैंपल में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी नहीं पाई गई है. हमारे बाकी सैंपल की जांच जारी है."

बच्चों की मौत के बाद उठे सवालों के बीच मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने शुक्रवार दोपहर कहा, "राज्य ड्रग टेस्टिंग लैब में अब तक 12 तरह के सिरप जांच के लिए भेजे गए हैं. इनमें से तीन की रिपोर्ट आ चुकी है और किसी में भी ऐसा तत्व नहीं पाया गया जिससे बच्चों की मौत का कारण स्पष्ट हो सके."

कफ़ सिरप से मौत के मामलों पर राजस्थान के चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा, "दवाई की हमने जांच की है, उसमें ऐसा कोई पदार्थ नहीं पाया गया है जो जानलेवा हो. इस दवाई की वजह से कोई मौत नहीं हुई है. मामले की जांच के लिए हमने एक कमेटी बनाई है."

वहीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई मौतों के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइज़री जारी की है. इसमें कहा गया है कि बच्चों को कफ़ सिरप केवल 'सावधानीपूर्वक और सोच-समझकर' ही दिया जाए.

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छिंदवाड़ा ज़िला प्रशासन के अनुसार, इस तरह का पहला मामला 24 अगस्त को सामने आया था और सात सितंबर को पहली मौत हुई थी.

यासीन बताते हैं कि उन्होंने अपने चार साल के बेटे उसैद का इलाज प्राइवेट अस्पताल में करवाया था.

उन्होंने कहा, "25 अगस्त को तबीयत ख़राब होने के बाद हमने एक प्राइवेट अस्पताल में बेटे को दिखाया था. 31 तारीख तक तबीयत में कुछ सुधार था लेकिन फिर अचानक बेटे की पेशाब बंद हो गई. लगभग दो दिन ऐसा ही चला तो फिर हम छिंदवाड़ा ज़िला अस्पताल लेकर पहुंचे. छिंदवाड़ा से नागपुर गए, वहां लगभग 10 दिन अस्पताल में रहने के बाद बेटे को मृत घोषित कर दिया गया."

यासीन ऑटो चालक हैं और उनके दो बेटे हैं. बड़े बेटे उसैद के इलाज में उन्होंने क़रीब 4 लाख रुपये ख़र्च कर दिए. इस दौरान उन्हें अपने जीवनयापन का इकलौता साधन ऑटो भी बेचना पड़ा.

यासीन कहते हैं, "पैसों का क्या है सर, बच्चा ज़िंदा बच जाता तो सब कुछ सफल हो जाता. मैं दोबारा ऑटो ख़रीद लेता. अब तो बस यही चाहता हूं कि किसी और पिता को ये दर्द न झेलना पड़े."

image BBC सभी मामले छिंदवाड़ा से

मध्य प्रदेश में मृत सभी 11 बच्चे छिंदवाड़ा के परासिया ब्लॉक के निवासी थे.

परासिया विकासखंड के एसडीएम शुभम कुमार यादव ने बताया कि परासिया ब्लॉक में लगभग 2.8 लाख लोग रहते हैं, जिनमें से करीब 25 हज़ार बच्चे पांच साल से कम उम्र के हैं.

उन्होंने कहा, "अब तक इस मामले में हमने इलाके़ के पानी के सैंपल, मच्छरों और चूहों से फैलने वाली बीमारियां जैसी कई संभावित वजहों की जांच कराई. इन सभी की रिपोर्ट सामान्य आई."

एसडीएम ने आगे बताया, "स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के परामर्श से मृत बच्चों की मेडिकल हिस्ट्री का अध्ययन किया गया, जिसमें कफ़ सिरप के इस्तेमाल का मामला सामने आया."

एसडीएम ने कहा कि विभिन्न जगहों से सिरप के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं और जैसे ही उन सभी की रिपोर्ट आएगी, प्रशासन यह समझ पाएगा कि बच्चों की किडनी ख़राब या फे़ल होने का असली कारण क्या है.

हालांकि, मध्य प्रदेश की सरकार पिछले लगभग 10 दिनों से जांच अधूरी होने का हवाला दे रही है. वहीं तमिलनाडु के ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट ने एक दिन के अंदर ही कोल्ड्रिफ़ कफ़ सिरप में मानकों के उलट और ज़हरीले तत्व डायथिलीन ग्लाइकॉल के होने की पुष्टि की है.

छिंदवाड़ा में एक अन्य परिजन का आरोप है, "आख़िर कैसे कोई ज़हरीली या हानिकारक दवाई बाज़ार में बिक रही है? मध्य प्रदेश की सरकार ये सब पता क्यों नहीं लगा पा रही है? तमिलनाडु की सरकार ने एक दिन में पता लगा लिया. क्या मध्य प्रदेश की सरकार ये जांच नहीं करती कि उसकी नाक के नीचे कौन दवाइयों के नाम पर बच्चों को मारने का सिरप बेच रहा है."

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साल 2023 में भारत के डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विस ने एक सर्दी की प्रचलित दवा के फ़ॉर्मूले को चार साल के कम उम्र के बच्चों को दिए जाने परप्रतिबंध लगाया था.

इस फॉर्मूले में क्लोरफेनिरामाइन मैलेट और फेनिलेफ्रीन जैसे ड्रग्स शामिल थे जो 2015 में मंज़ूर किए गए थे और आमतौर पर खांसी-सर्दी के सिरप के मुख्य एलिमेंट्स होते हैं.

यह प्रतिबंध उस समय आया था जब साल 2022 में गाम्बिया और उज़्बेकिस्तान में भारत में बनी खांसी की दवाओं से बच्चों की मौत के मामलों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी थी.

हालांकि, इन दवाओं के निर्माता किसी भी ग़लती से इनकार करते रहे हैं और दावा करते हैं कि उनके उत्पाद निर्धारित मात्रा में इस्तेमाल करने पर पूरी तरह सुरक्षित हैं.

छिंदवाड़ा में स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी से कहा, "जिन बच्चों की मृत्यु हुई है उनमें से 6-7 बच्चे 4 साल या उससे कम उम्र के थे."

एमपी में पहले भी ऐसे मामले आए

मध्य प्रदेश में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर पहले भी गंभीर सवाल उठे हैं.

अगस्त 2024 में राज्यभर में 9 से अधिक ज़रूरी दवाओं और इंजेक्शन की सप्लाई पर रोक लगा दी गई थी क्योंकि ये क्वालिटी टेस्ट में फे़ल हो गई थीं.

मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य सेवा निगम लिमिटेड (एमपीपीएचएससीएल) ने इन दवाओं को घटिया श्रेणी में रखा था. इसके बाद मरीज़ों की सुरक्षा और राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठे थे.

जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट अमूल्य निधि कहते हैं, "सिरप से साइड इफ़ेक्ट हो सकता है, मौत नहीं. इसलिए छिंदवाड़ा में हो रही बच्चों की मृत्यु के बाद सिरप की क्वालिटी नहीं बल्कि सिरप में क्या-क्या मिलाया गया है, उस पर सवाल होना चाहिए. सरकार कह रही है कि जांच कर रहे हैं. आखिर जांच में कितना समय लगता है?"

अमूल्य निधि ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हुए कहा, "सरकार बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर नहीं दिख रही है. ज़िम्मेदारों पर कार्रवाई करने के बजाय देरी की रणनीति अपनाई जा रही है. हालात बेहद ख़राब हैं. शिशु मृत्यु दर और मां की मृत्यु दर सबसे ख़राब स्तर पर है. इंदौर में बच्चों को चूहे के काटने का मामला सामने आया और अब छिंदवाड़ा में ब्रेक ऑयल मिले कफ़ सिरप से बच्चों की मौत हो गई. डॉक्टरों को स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट गाइडलाइन्स का पालन करना चाहिए और दवा खरीद नीति व दवाओं की गुणवत्ता की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए."

मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक है. यहां हर 1,000 नवजात में से 40 की मौत हो जाती है.

यह जानकारी स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने जुलाई 2025 में विधानसभा में एक लिखित जवाब में दी थी. उन्होंने लेटेस्ट सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (2022) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया था कि राज्य की शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है.

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पांच साल के अदनान ख़ान की भी मौत सात सितंबर को कथित तौर पर कफ़ सिरप पीने और उसके बाद किडनी के काम न करने से हुई.

अदनान के पिता अमीन ख़ान फ़ोन पर बात की स्थिति में नहीं थे.

बीबीसी से अमीन के बड़े भाई साजिद ख़ान ने कहा, "अदनान बेटे को कभी गंभीर बीमारी नहीं हुई थी. इस बार हल्के बुखार के बाद उसकी हालत बिगड़ती चली गई और हम उसे बचा नहीं पाए."

अदनान के पिता एक ग्राहक सेवा केंद्र चलाते हैं और महीने का लगभग 10 हज़ार रुपये कमाते हैं.

साजिद बताते हैं कि लगभग 15 दिन में 7 लाख रुपये से ज़्यादा खर्च करने के बाद भी अदनान की मौत हो गई.

चार साल के विकास यदुवंशी के घर पर भी सन्नाटा पसरा हुआ है.

बच्चे के पिता प्रभुदयाल यदुवंशी ने कहा, "10 दिन में सर्दी-खांसी, बुखार से लेकर किडनी फेल हो गई? हमें तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है. पता नहीं क्या हो गया."

विकास के माता-पिता किसान हैं और बेटे को खोने के बाद अब न्याय की मांग कर रहे हैं.

घर के एक कोने में बैठे प्रभुदयाल ने सवाल उठाया, "हमें हमारे बच्चे के लिए इंसाफ़ चाहिए. हमारा बच्चा स्वस्थ था. ज़ुकाम और बुखार से उसकी किडनी ने कैसे काम करना बंद कर दिया? सरकार हमें तो ये बताए कि इसका जवाब कौन देगा और कब देगा?"

वहीं, साजिद ने बीबीसी से कहा, "हम तो ये चाहते हैं कि जो भी दोषी हो, चाहे वो दवाई बनाने वाले हों या ये दवाई बेचने. जो भी दोषी हों, उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिले. बेटा तो चला गया है, अब कम से कम कोई और अपना बच्चा इन गंदी दवाइयों के चलते न खोए."

image Getty Images केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सलाह दी है कि दो साल और उससे कम उम्र के बच्चों को खांसी और सर्दी की दवाएं नहीं दी जानी चाहिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

पीडियाट्रिशियन डॉक्टर अवेश सैनी से हमने जाना कि आम इंसान ये कैसे पता लगाए कि दवाई नकली है या असली है.

उन्होंने बताया, "सिरप की बनावट (फिज़िकल अपीयरेंस) कैसी है?. उसका क्लाउडिनेस कलर चेंज है या उसमें कोई पार्टिकल दिख रहा है. दवाई में सॉल्ट नीचे बैठ गया है और अगर बैच नंबर नहीं लिखा है या मिटा दिया गया है तो वह भी ठीक नहीं है. दवाई पर ड्रग लाइसेंस नंबर लिखा होना भी ज़रूरी है यदि नहीं लिखा है तो वह भी नहीं लेनी चाहिए."

डॉक्टर सैनी कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि दो साल के बच्चों को लेकर अभी गाइडलाइंस आई हैं, यह पहले से ही हैं. दो साल से छोटे बच्चों के लिए कोई स्टडी नहीं है इसलिए यह दो साल से ऊपर के ही बच्चों को दी जाती है."

कितना डोज़ दिया जाना चाहिए, इस पर वह कहते हैं, "दवाई का डोज़ फिक्स है जो डॉक्टर बताते हैं. ये वज़न के हिसाब से होता है और इसलिए दवाई देने से पहले बच्चों का वज़न किया जाता है."

नकली सिरप से और कितनी परेशानियां हो सकती हैं, इस पर वह कहते हैं, "सांस लेने में तकलीफ़, पेट दर्द होगा. यह किडनी को इफेक्ट कर सकता है और सभी केमिकल बॉडी में इकट्ठे हो जाएंगे और फिर ब्रेन को इफेक्ट करते हैं. जिसके बाद दौरे आ सकते हैं और फिर हार्ट बीट रुक सकती है."

वहीं, भोपाल में पिछले एक दशक से कार्यरत डॉ. हर्षिता शर्मा ने बीबीसी को बताया, "कफ़ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल मूल रूप से कूलेंट के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं. इनका स्वाद मीठा और ठंडा होता है, जो खाने योग्य सोर्बिटॉल जैसा लगता है. लेकिन सोर्बिटॉल महंगा होता है, इसलिए अक्सर दवा कंपनियां सस्ते विकल्प के रूप में डायथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल करती हैं. दोनों ही तत्व देसी शराब में मौजूद मिथाइल अल्कोहल की श्रेणी में आते हैं और दोनों रसायन शरीर के लिए बेहद ज़हरीले होते हैं."

उन्होंने बताया, "इन रसायनों से बनी दवाएं बच्चों के लिए खास तौर पर 'नेफ़्रोटॉक्सिक' होती हैं यानी किडनी पर सीधा असर डालती हैं. ये रसायन शरीर में एसिड की मात्रा बढ़ा देते हैं, जिसे नियंत्रित करने का काम किडनी करती है और जब वही अंग प्रभावित हो जाए, तो ज़हर फैलने लगता है और मौत हो जाती है."

(राजस्थान से बीबीसी के लिए मोहर सिंह मीणा और छिंदवाड़ा से स्थानीय पत्रकार अंशुल जैन के इनपुट के साथ)

बीबीसी हिन्दी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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