ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह निधन हो गया. कार्डिनल केविन फेरेल ने पोप के निधन की घोषणा की.
फेरेल ने अपनी घोषणा में कहा, ''रोम के स्थानीय समय सुबह 7:35 बजे पोप फ़्रांसिस ने आख़िरी सांस ली. फ़्रांसिस का पूरा जीवन लॉर्ड और चर्च की सेवा में समर्पित था. पोप फ्रांसिस ने हम सबको हमेशा साहस, प्यार और हाशिए के लोगों के पक्ष में खड़ा रहने के लिए प्रेरित किया. पोप फ़्रांसिस लॉर्ड जीसस के सच्चे शिष्य थे.''
पोप फ्रांसिस को कैथोलिक चर्चों में सुधार के लिए भी जाना जाता है. इसके बावजूद पोप परंपरावादियों के बीच भी लोकप्रिय थे. फ्रांसिस दक्षिण अमेरिका (अर्जेंटीना) से बनने वाले पहले पोप थे.
पोप फ़्रांसिस ईस्टर संडे को ही वेटिकन में सेंट पीटर्स स्क्वेयर पर सब से मुख़ातिब हुए थे.
पोप व्हील चेयर पर बालकनी में लोगों से मुख़ातिब हुए थे और उन्होंने कहा था- प्रिय भाइयों और बहनों, आप सबको ईस्टर मुबारक हो.
पारंपरिक ईस्टर संबोधन उनके सहयोगी ने पढ़ा था और पोप बैठे हुए थे.
पहले दक्षिण अमेरिकी जेसुइटपोप फ्रांसिस, रोमन कैथोलिक चर्च का नेतृत्व करने वाले पहले लैटिन अमेरिकी और जेसुइट थे.
कार्डिनल जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो 2013 में जब बेनेडिक्ट XVI के उत्तराधिकारी चुने गए तो वेटिकन के लिए वह एक तरह से बाहरी व्यक्ति थे.
266वें पोप के रूप में उनके निर्वाचन ने विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया था. विश्लेषक 76 साल के पोप की बजाय किसी युवा पोप के चुने जाने की उम्मीद कर रहे थे.
चुनाव के दौरान उन्हें रूढ़िवादियों और सुधारकों दोनों का ही जबरदस्त समर्थन मिला. उन्हें यौन मामलों में रूढ़िवादी और सामाजिक मामलों में उदार माना जाता था.
समर्थक उन्हें लोगों से जुड़ने, क्यूरिया (वेटिकन नौकरशाही) में सुधार लाने, वेटिकन बैंक में भ्रष्टाचार को समाप्त करने और चर्च में बाल यौन शोषण रोकने के संकल्प के कारण खासा पसंद करते थे.
पोप बनने के चार साल बाद हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि पोप की लोकप्रियता कैथोलिक और अन्य धर्मों के बीच बहुत ज़्यादा है. सोशल मीडिया एक्स पर उन्हें डेढ़ करोड़ से भी ज़्यादा लोग फ़ॉलो करते हैं.
हालांकि कई मुद्दों पर सीधा दखल न देने के कारण वेटिकन के अंदर और बाहर उनके विरोधियों की संख्या भी काफी रही.
सामाजिक आलोचकबीबीसी रोम संवाददाता डेविड विली के अनुसार, चुनाव के अगले ही दिन सुबह नए पोप रोमन बेसिलिका में प्रार्थना करने के लिए अज्ञात वाहनों के काफिले में वेटिकन सिटी से बाहर निकले थे.
वेटिकन लौटते समय उन्होंने इतालवी राजधानी के मध्य में पादरी वर्ग के लिए बने एक होटल में अपना बिल चुकाने पर ज़ोर दिया, इससे उनकी शैली की छाप पोप पद पर तुरंत पड़ गई.
उन्होंने उस विशाल पेंटहाउस अपार्टमेंट को त्याग दिया, जिसे पोप कई शताब्दियों से इस्तेमाल कर रहे थे. वह वेटिकन गेस्टहाउस के एक छोटे से सुइट में रहने लगे. इसके साथ ही उन्होंने पोप के ग्रीष्मकालीन निवास कासल गंडोल्फो को भी त्याग दिया.
उन्होंने मुक्त बाजार अर्थशास्त्र पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि चर्च को समलैंगिक लोगों के लिए राय बनाने के बजाय उनसे माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने अन्य बातों के अलावा यूरोपीय प्रवासी हिरासत केंद्रों की तुलना नज़रबंदी शिविरों से की.
पोप को लेकर विशेषज्ञों ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि पोप पूरी तरह से उदारवादी हैं. रोमन कैथोलिक मामलों की समाचार वेबसाइट क्रूक्स के संपादक जॉन एलन जूनियर ने 2016 में लिखा, "फ्रांसिस भी स्पष्ट रूप से 'रूढ़िवादी' हैं."
उन्होंने "कैथेशिज्म का एक कॉमां भी नहीं बदला है. कैथेशिज्म चर्च की शिक्षाओं का आधिकारिक संग्रह है. उन्होंने महिला पादरियों के लिए मना किया है. समलैंगिक विवाह को भी ना कहा. गर्भपात को सबसे भयानक अपराध बताया. जन्म नियंत्रण पर प्रतिबंध का बचाव किया है और हर दूसरे विवादित मुद्दे पर खुद को एक वफ़ादार 'चर्च का बेटा' घोषित किया है."
हालांकि क्यूरिया को काबू करने, पुनर्विवाह के बाद प्रभु-भोज जैसे मुद्दों पर चर्च के रुख़ को नरम करने की उनकी इच्छा से उनके अधिकारों को चुनौती भी मिली. उन्होंने उन कार्डिनल्स को बदलने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई, जिनसे वह सहमत नहीं थे.
विनम्र जीवनशैलीजॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो का जन्म 17 दिसंबर 1936 को ब्यूनस आयर्स में हुआ था, वे इतालवी मूल के थे.
आधिकारिक वेटिकन जीवनी के अनुसार, उन्हें 1969 में जेसुइट के रूप में नियुक्त किया गया था और वे अध्ययन के लिए अर्जेंटीना और जर्मनी गए थे.
युवावस्था में संक्रमण के कारण उनका एक फेफड़ा निकाल दिया गया था. वह 1992 में बिशप बने और 1998 में ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप बने.
2005 के सम्मेलन में उन्हें पोप पद के दावेदार के रूप में देखा गया.
कार्डिनल बर्गोग्लियो के रूप में अर्जेंटीना में उनका प्रभाव रहा. वह अपने उपदेशों में सामाजिक समावेश पर जोर देते थे. अप्रत्यक्ष रूप से वह उन सरकारों की भी आलोचना करते थे जो समाज में हाशिये पर रहने वालों पर ध्यान नहीं देती थीं.
उनकी जीवनी की सह-लेखिका फ्रांसेस्का एम्ब्रोगेटी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उनकी सार्वजनिक अपील का एक हिस्सा उनकी "शांत और सादगीपूर्ण" जीवनशैली थी.
चर्च के लिए एक जेसुइट को प्रभारी बनाना एक नई बात थी. इसके सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे चर्च संबंधी सम्मान से दूर रहें तथा स्वयं पोप की सेवा करें.
पोप के विचारों की परीक्षा अर्जेंटीना में हुई. अर्जेंटीना ही समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला पहला लैटिन अमेरिकी देश था. इसकी तत्कालीन राष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडीज डी किर्चनर ने मुफ्त गर्भनिरोधक और कृत्रिम गर्भाधान को बढ़ावा दिया था.
पूर्व कार्डिनल एक प्रबल अर्जेंटीनी देशभक्त प्रतीत होते हैं, उन्होंने 2016 में फॉकलैंड युद्ध के अर्जेंटीना के अनुभवी सैनिकों से कहा था, "हम उन सभी के लिए प्रार्थना करने आए हैं जो शहीद हो गए हैं, मातृभूमि के बेटे जो अपनी मां, मातृभूमि की रक्षा करने के लिए और जो उनका है उसे पुनः प्राप्त करने के लिए देश से बाहर गए."
विवादों में भी रहेअर्जेंटीनी सैन्य तानाशाही 1976-1983 के दौरान उनकी भूमिका विवादित रही. उस समय उन्होंने देश के जेसुइट का नेतृत्व किया था.
बीबीसी के व्लादिमीर हर्नांडेज़ की रिपोर्ट के अनुसार आरोप है कि 1976 में ब्यूनस आयर्स की मलिन बस्तियों में उनके सामाजिक कार्यों का सार्वजनिक रूप से समर्थन करने से दो पादरियों ने इनकार कर दिया था. उन्होंने फिर उन्हें सैन्य अधिकारियों को सौंप दिया था. इससे जुंटा काफी क्रोधित हो गए थे.
इस "डर्टी वॉर" के दौर में यह भी आरोप लगा कि अपहरण की शिकार हुई एक महिला के शिशु की तलाश के आग्रह पर काम करने में वो विफल रहे थे. महिला का उस समय अपहरण कर लिया गया था जब वह पांच माह की गर्भवती थी. इसके बाद 1977 में उसकी हत्या कर दी गई. ऐसा माना जाता है कि महिला के शिशु को किसी ने अवैध रूप से गोद लिया था.
वेटिकन ने इस बात से पूरी तरह से इनकार किया है कि पोप फ्रांसिस जुंटा के अधीन किसी भी गलत कार्य के लिए दोषी थे.
यह बात सामने आई है कि 2011 में उन्होंने सैन्य शासन के दौरान मारे गए अर्जेंटीना के पादरियों को संत बनाने की दिशा में शुरुआती कदम उठाए थे. एक दूसरे मामले में पांच कैथोलिक चर्च के लोगों को भी संत की उपाधि देने का प्रस्ताव उन्होंने रखा. इनकी हत्या 1976 में ब्यूनस आयर्स के सेंट पैट्रिक चर्च में की गई थी.
पोप के अनुरोध पर वेटिकन ने अर्जेंटीना तानाशाही से संबंधित फाइलें पीड़ितों और उनके रिश्तेदारों के लिए खोल दीं.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मानवाधिकार कार्यकर्ता एडोल्फो पेरेज़ एस्क्विवेल, जिन्हें शासन ने जेल में डालकर यातानाएं दी थी, ने बीबीसी को बताया था कि "कुछ बिशप थे जो सेना के साथ मिलीभगत कर रहे थे, लेकिन बर्गोग्लियो उनमें से नहीं हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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