क़रीब एक हज़ार एकड़ ज़मीन और सालाना किराया सिर्फ़ एक रुपये.
देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक गौतम अदानी की कंपनी अदानी पावर लिमिटेड को बिहार सरकार ने थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए यह ज़मीन 25 सालों के लिए लीज़ पर दी है.
लेकिन भागलपुर ज़िले के पीरपैंती में इस ज़मीन को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है.
यह ज़मीन अब सियासी मंचों पर चर्चा का विषय बन चुकी है.
कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआई (एमएल) ने बिहार सरकार और बीजेपी पर निशाना साधा है और अदानी को फ़ायदा पहुँचाने का आरोप लगाया है.
दूसरी ओर बीजेपी ने इन आरोपों से इनकार किया है और बिहार सरकार का कहना है कि अदानी को यह प्रोजेक्ट प्रक्रिया का पालन करते हुए मिला है.
अदानी को प्रोजेक्ट दिए जाने के अलावा प्रस्तावित ज़मीन पर बड़ी संख्या में पेड़ों को काटने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.
इन आरोपों पर बीबीसी ने अदानी समूह से जवाब लेने के लिए कई बार संपर्क किया, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
एक रुपये लीज़ पर ज़मीन
पटना से तक़रीबन 250 किलोमीटर दूर भागलपुर के रास्ते में ज़िंदगी और संघर्ष की कई तस्वीरें साथ-साथ चलने लगती हैं.
भागलपुर ज़िला मुख्यालय से आगे बढ़ते हुए कहलगाँव आता है, जहाँ एनटीपीसी के थर्मल पावर प्लांट की ऊँची-ऊँची चिमनियाँ आसमान को चीरती हुई खड़ी हैं.
लेकिन जैसे-जैसे गाड़ी पीरपैंती की तरफ़ मुड़ती है, नज़ारा बदल जाता है. दूर से हज़ारों आम के हरे-भरे पेड़ दिखने लगते हैं, जो इस इलाक़े को किसी बाग़ की शक्ल देते हैं.
फ़रवरी 2025 में बिहार सरकार ने नए सिरे से भागलपुर के पीरपैंती में 2400 मेगावॉट के थर्मल पावर प्लांट लगाने की परियोजना प्रस्तावित की थी.
राज्य सरकार ने तय किया कि यह थर्मल प्लांट टैरिफ़ बेस्ड कॉम्पिटिटिव बिडिंग (यानी बोली की प्रक्रिया) के ज़रिए लगाया जाएगा.
16 जुलाई 2025 को ऑनलाइन नीलामी में बिजली बेचने के लिए अदानी पावर लिमिटेड ने सबसे कम क़ीमत यानी 6.075 रुपये (छह रुपये, साढ़े सात पैसे) प्रति किलोवाट-घंटा की बोली लगाकर यह प्रोजेक्ट अपने नाम किया.
टैरिफ़ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली में टोरेंट पावर लिमिटेड ने 6.145 रुपये, ललितपुर पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड ने 6.165 रुपये और जेएसडब्ल्यू एनर्जी लिमिटेड ने 6.205 रुपये प्रति किलोवाट-घंटा की दर से बिजली आपूर्ति की पेशकश की थी.
अदानी पावर लिमिटेड के बिड जीतने के क़रीब 20 दिन बाद यानी 5 अगस्त 2025 को बिहार राज्य कैबिनेट की बैठक हुई.
इस बैठक में सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी (अदानी पावर लिमिटेड) को क़रीब एक हज़ार एकड़ ज़मीन सिर्फ़ एक रुपये सालाना किराए की दर पर देने का निर्णय लिया गया.
यह ज़मीन अदानी पावर को 25 सालों के लिए लीज़ पर दी गई है.
बिहार के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "भूमि का स्वामित्व पूरी तरह से ऊर्जा विभाग, बिहार सरकार के पास बना रहेगा."
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कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने बीजेपी पर सत्ता का दुरुपयोग कर अदानी को फ़ायदा पहुँचाने का आरोप लगाया है.
उन्होंने दावा किया, "1050 एकड़ ज़मीन, 10 लाख आम, लीची और सागवान के पेड़ भागलपुर के पीरपैंती में एक रुपये प्रतिवर्ष की दर पर गौतम अदानी को दे दिए."
कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ निखिल आनंद ने बीबीसी से कहा, "कांग्रेस पार्टी को फ़ोबिया हो गया है और वह बिहार चुनाव की घोषणा से पहले ही बदहवास नज़र आ रही है."
उन्होंने कहा, "पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विकास के नए आयाम गढ़ रहा है. बिहार में विकास के जितने काम हुए हैं, उसमें टेंडरिंग की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है और मेरिट के बगैर तो किसी को टेंडर अलॉट भी नहीं किया जा सकता."
निखिल आनंद ने कहा, "कांग्रेस लगातार अदानी पर निशाना साधकर राजनीति करती रही है लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में अदानी की कंपनियों को बड़े-बड़े ठेके दिए जाते हैं. कांग्रेस राजनीति के लिए अपना दोहरा चरित्र प्रदर्शित करने से बाज़ आए."
वहीं बिहार के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "देश के सभी राज्य ऐसा करते हैं. बड़े निवेश के लिए ज़मीन सस्ती दर पर दी जाती है. पीरपैंती में भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई 2010-11 में ही शुरू हो गई थी."
उन्होंने कहा, "पारदर्शी तरीक़े से बिडिंग हुई. इसमें देश की चार बड़ी कंपनियों ने हिस्सा लिया. अदानी समूह ने राज्य सरकार को सबसे सस्ती दर पर बिजली देने की बिड की, जिसके बाद उनको यह प्रोजेक्ट मिला."
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वहीं सीपीआई (एमएल) ने 21 सितंबर को एक जाँच रिपोर्ट पेश की, जिसमें दावा किया गया है कि इस प्लांट से बिहार सरकार को सालाना 5,000 करोड़ रुपये का नुक़सान होगा और इलाक़े में जल संकट की स्थिति भी बनेगी.
पार्टी ने 22 सितंबर को राज्य भर में विरोध प्रदर्शन भी किया.
वहीं बिहार की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने भी इस प्लांट को लेकर सवाल उठाए हैं और बीजेपी पर निशाना साधा है.
आरजेडी के प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा, "सरकार हर तरीक़े से अदानी को फ़ायदा पहुँचा रही है. दूसरे राज्यों से होते हुए अब ये लोग बिहार में किसानों की हक़ मारी के लिए पहुँच गए हैं. हमारी पार्टी इसका विरोध करती है."
आरोपों का जवाब देते हुए बिहार के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने कहा कि सबसे कम बोली के आधार पर यह प्रोजेक्ट अदानी पावर लिमिटेड को दिया गया है.
कैसे हुआ ज़मीन का अधिग्रहण?
बिहार सरकार ने साल 2010 से 2012 के बीच पीरपैंती की पाँच पंचायतों में ज़मीन का अधिग्रहण किया था. क़रीब 900 किसानों से कुल 988.33 एकड़ ज़मीन ली गई.
भागलपुर के ज़िलाधिकारी नवल किशोर चौधरी ने बीबीसी को बताया, "बिहार में बिजली की ज़रूरत को समझते हुए सरकार ने कई जगहों पर थर्मल पावर प्लांट बनाने का संकल्प लिया था. इसी के तहत पीरपैंती में ज़मीन का अधिग्रहण किया गया."
वह बताते हैं, "97 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों को हम भुगतान कर चुके हैं. इनमें से ज़्यादा भुगतान बिहार सरकार ने 2015 से पहले ही कर दिया था. किसानों से ज़मीन बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के नाम पर ली गई थी, जिसे अथॉरिटी ने विद्युत विभाग को दे दिया."
उनका कहना है, "जिन किसानों का मामला भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्राधिकरण बोर्ड (लारा कोर्ट) या सिविल कोर्ट में लंबित नहीं है और उनका मुआवज़ा बकाया है. वे भुगतान के लिए आवेदन देकर तुरंत पैसा ले सकते हैं."
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सरकारी दावों के उलट पीरपैंती में हमें कई ऐसे किसान मिले, जिनका दावा है कि उन्हें उनकी ज़मीन का पूरा और सही मुआवज़ा अभी तक नहीं मिला है.
इस अधिग्रहण में शेख़ हमीद की पौने तीन एकड़ ज़मीन भी गई है. इस ज़मीन के बदले उन्हें सरकार से क़रीब दो करोड़ रुपये का मुआवज़ा मिला.
उनका कहना है, "यह पैसा हमें साल 2014 के आसपास मिला था, लेकिन अभी भी क़रीब 50 प्रतिशत पैसा मिलना बाक़ी है."
अन्य किसानों की तरह शेख़ हमीद के बेटे एजाज़ अहमद सवाल उठाते हुए कहते हैं, "अधिग्रहण के समय पारदर्शिता नहीं बरती गई."
"हमारे चार आम के बाग़ एक ही जगह पर हैं, लेकिन किसी बाग़ की ज़मीन का मुआवज़ा 62 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से दिया गया, तो किसी का 82 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से."
पीरपैंती के ही रहने वाले मोहम्मद अज़मत कहते हैं, "मेरे पास क़रीब ढाई एकड़ ज़मीन है, जिसे 2012 में सरकार ने ले लिया. दो साल बाद मुआवज़े का पैसा मिला. अभी भी 20 प्रतिशत पैसा बचा हुआ है."
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इन सवालों का जवाब देते हुए ज़िलाधिकारी नवल किशोर चौधरी कहते हैं, "सर्वे के समय अधिग्रहण की जाने वाली ज़मीन पर मौजूद अचल संपत्ति यानी घर और पेड़ों को भी अकाउंट में लिया जाता है."
"उसी के हिसाब से मुआवज़े का अनुमान लगाया जाता है. यह सरकार पहले ही कर चुकी है और अब यह सवाल ही नहीं बनता कि क्या दिया गया और क्या नहीं."
अलग-अलग मुआवज़े के सवाल पर उनका कहना है, "पीरपैंती में भूमि अधिग्रहण दो हिस्सों में हुआ. 2010 में पुराने एक्ट के हिसाब से मुआवज़ा मिला, वहीं 2013 में नए एक्ट के हिसाब से. सबकी अपनी क़िस्मत है कि किसे कितना मिला. प्रशासन ने एक्ट के हिसाब से काम किया है."
एक आरटीआई के जवाब में भागलपुर के भू-अर्जन पदाधिकारी राकेश कुमार ने बताया कि बिहार भू-अर्जन पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास नीति 2007 के तहत कृषि योग्य भूमि के लिए 19 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवज़ा दिया गया.
वहीं बंजर ज़मीन का रेट 8 लाख 40 हज़ार रुपये प्रति एकड़ तय किया गया था.
राकेश कुमार का कहना है कि मुआवज़ा देते समय कृषि योग्य भूमि पर मौजूद पेड़ों का भी मुआवज़ा अलग से दिया गया है.
कितने पेड़ों को काटना होगा?बिहार सरकार से लीज़ पर मिली क़रीब एक हज़ार एकड़ ज़मीन पर प्लांट लगाने के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को काटना पड़ेगा.
कई किलोमीटर तक पीरपैंती की इस ज़मीन पर घने आम के बगीचे फैले हुए हैं. जहाँ तक नज़र जाती है, हरे-भरे आम के पेड़ दिखाई देते हैं. यहाँ के आम भी बहुत मशहूर हैं, जो विदेशों तक एक्सपोर्ट होते हैं.
विपक्षी पार्टियों का दावा है कि थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए 10 लाख पेड़ों को काटा जाएगा, जिसके विरोध में कई शहरों में प्रदर्शन भी हुए हैं.
क्या प्लांट के लिए 10 लाख पेड़ काटे जाएँगे? इस सवाल का जवाब देते हुए भागलपुर के ज़िलाधिकारी नवल किशोर कहते हैं, "एक हज़ार एकड़ में इतने पेड़ आ ही नहीं सकते. भू-अर्जन की प्रक्रिया जब होती है, तो ज़मीन पर मौजूद हर एक घर और हर एक पेड़ की गिनती होती है."
नवल किशोर ने बताया, "हमारे आँकड़ों में वहाँ पर 10,500 के क़रीब पेड़ हैं. यह गिनती 2013 से पहले की गई थी. अभी 2025 चल रहा है. इस बीच अगर किसी व्यक्ति ने ख़ुद पेड़ लगा दिए हों, तो उसके बारे में नहीं कहा जा सकता है."
ऐसी ही बात राज्य के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा भी करते हैं. उनका कहना है, "भूमि अधिग्रहण के समय वहाँ क़रीब 10 हज़ार पेड़ मौजूद थे. वहाँ मौजूद सभी पेड़ों को नहीं काटा जाएगा. सिर्फ़ पावर प्लांट क्षेत्र (300 एकड़) और कोल हैंडलिंग एरिया में ही कुछ पेड़ काटे जाएँगे."
उन्होंने बताया, "इसके बदले में 100 एकड़ में कम्पल्सरी अफ़ोरेस्टेशन के तहत ग्रीन बेल्ट विकसित की जाएगी."
पेड़ों की वास्तविक संख्या को लेकर विवाद है. बीबीसी को थर्मल पावर प्रोजेक्ट की बिड से जुड़ा एक सरकारी दस्तावेज़ मिला है, जिसके मुताबिक़ अधिग्रहित की गई क़रीब 400 एकड़ ज़मीन में लगभग तीन लाख पेड़ हैं.
जब हम आम के बगीचों में पहुँचे, तो हमने पाया कि पेड़ों को गिनने का काम किया जा रहा है. पेड़ों के तने को छीलकर एक संख्या लिखी जा रही है. यह काम अभी पूरा नहीं हुआ है.
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पेड़ों को पर्यावरण मंज़ूरी मिलने के सवाल पर भागलपुर के ज़िलाधिकारी ने कहा, "वह प्रक्रिया में है. उसे लेने के बाद ही विधिवत काम करवाया जाएगा."
इन पेड़ों को काटे जाने की आशंका से पर्यावरण कार्यकर्ता चिंतित हैं. किसान चेतना एवं उत्थान समिति के अध्यक्ष श्रवण कुमार इस मामले को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (कोलकाता) में ले गए हैं.
उन्होंने ट्राइब्यूनल में शिकायत की है कि थर्मल पावर प्लांट पर रोक लगाई जाए, क्योंकि प्लांट लगने से क़रीब 10 लाख पेड़ों की कटाई की जाएगी, जो पर्यावरण के लिहाज़ से बहुत ख़तरनाक है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र के 20 किलोमीटर की परिधि में पहले से दो थर्मल प्लांट चल रहे हैं- कहलगाँव में एनटीपीसी का और गोड्डा में अदानी का. ऐसे में नया थर्मल पावर प्लांट प्रदूषण को और बढ़ाने का काम करेगा."
पेड़ों की कटाई पर बीबीसी ने बिहार स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड और अदानी पावर लिमिटेड से प्रतिक्रिया लेने की कई बार कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
वहीं भागलपुर की वन प्रमंडल पदाधिकारी श्वेता कुमारी का कहना है कि पेड़ों की कटाई के संबंध में फ़िलहाल उनके पास कोई आवेदन नहीं आया है.
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15 सितंबर को प्रधानमंत्री पूर्णिया पहुँचे थे. यहीं से उन्होंने पीरपैंती में बनने जा रहे अदानी समूह के थर्मल पावर प्लांट का वर्चुअली शिलान्यास भी किया था.
इसके बाद से स्थानीय किसानों की घबराहट और बढ़ गई है. आम के बगीचे में अपने पेड़ों को दिखाते हुए शेख़ हमीद कहते हैं, "हमारी ज़मीन पर 125 आम, 45 सागवान, 10-15 जामुन और क़रीब 10 बीजू आम के पेड़ हैं."
मोहम्मद अज़मत की भी क़रीब ढाई एकड़ ज़मीन पर आम के पेड़ लगे हुए हैं.
उनका कहना है, "सरकार एक फ़ैक्टरी लगाने जा रही है, जबकि मेरी फ़ैक्टरी इस ज़मीन पर पहले से लगी हुई है. इससे क़रीब पाँच लाख रुपये सालाना कमाई होती है. पेड़ नहीं रहेंगे, तो कहीं मज़दूरी करनी पड़ेगी. आज हमने पेड़ों को इतना बड़ा कर दिया है, तो सरकार हमसे इन्हें छीन रही है."
इसी तरह स्थानीय किसान शोभाकांत यादव भी अपने 30 आम के पेड़ों को लेकर चिंतित हैं.
वह कहते हैं, "यहाँ पानी की कमी है. टैंकर से पानी लाना पड़ता है. कई दशकों की मेहनत के बाद ये पेड़ तैयार हुए हैं. हम इन पेड़ों को कटने नहीं देंगे, फिर भले हमें कुछ भी क्यों ना करना पड़े."
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थर्मल पावर प्लांट के लिए यहाँ सिर्फ़ पेड़ ही नहीं काटने होंगे, बल्कि कई घरों को भी तोड़ा जाएगा. क्योंकि ये भी परियोजना के बीच में आ रहे हैं.
पीरपैंती के कमालपुर गाँव में क़रीब 300 घर हैं. यहाँ क़रीब 50 घरों को 15 दिन के अंदर घर ख़ाली करने का नोटिस मिला है.
अनिल यादव की आँखों में अपने घर से बेदख़ल होने का डर साफ़ झलकता है. छह भाइयों और 50 लोगों के इस परिवार को 15 दिनों के भीतर अपना घर छोड़ना होगा.
वह कहते हैं, "सरकार 40 हज़ार रुपये प्रति डिसमिल (1 डिसमिल= एक एकड़ का 1/100 हिस्सा) ज़मीन का मुआवज़ा दे रही है, जबकि बाहर ज़मीन लेने पर क़ीमत दो लाख रुपये डिसमिल है. मुआवज़े की रक़म से तो हम दूसरी जगह घर नहीं बना पाएँगे."
पड़ोस की रीना कुमारी भी इसी संघर्ष का हिस्सा हैं. सरकार उनके परिवार को ज़मीन और घर का कुल मिलाकर लगभग 10 लाख रुपये मुआवज़ा दे रही है, लेकिन परिवार लेने को तैयार नहीं है.
रीना कहती हैं, "सरकार जितना मुआवज़ा दे रही है, उतने पैसे में दूसरी जगह ख़ाली ज़मीन भी नहीं मिलेगी. इतनी महंगाई में बाल बच्चों को लेकर कहाँ जाएँगे."
उनके लिए सिर से छत छिनने का हर दिन बड़ा होता जा रहा है. वे कहती हैं, "ये कैसा विकास है? यह हमारे साथ नाइंसाफ़ी है. हमें अपने ही घर से बेदख़ल किया जा रहा है. उद्घाटन के समय मंत्री आए और फीता काटकर सीधा चले गए. जिन्हें बेघर किया जा रहा है, उनसे कोई बात ही करने नहीं आया."
वह कहती हैं, "हम ज़बरदस्ती नहीं होने देंगे. हम किसी भी सूरत में अपना घर छोड़कर नहीं जाएँगे. सरकार को पहले हमारा पुनर्वास करना चाहिए, जिसकी कोई बात ही नहीं कर रहा है."
रीना का यह सवाल हमने भागलपुर के ज़िलाधिकारी के सामने रखा.
जवाब में उन्होंने कहा, "अगर किसी व्यक्ति का घर तोड़ना है, तो उसे मुआवज़ा दिया गया है. आम जनता के प्रति हमारी सहानुभूति है. वे किसी दूसरी जगह पर घर बनाएँ. हम यह देख सकते हैं कि सरकार की किस योजना के तहत उन्हें लाभान्वित बनाएँ."
पीरपैंती के लोगों का कहना है कि विकास की रफ़्तार अगर उनके आंगन उजाड़कर गुज़रेगी, तो ये सौदा उन्हें मंज़ूर नहीं.
सरकार और कंपनी के लिए यह एक परियोजना है, लेकिन यहाँ के परिवारों के लिए यह ज़िंदगी का सबसे बड़ा सवाल बन गई है- अपना घर बचाना या कहीं नई शुरुआत करना.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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