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टैरिफ़ लागू होने के बाद भी भारत पर क्यों बरस रहे हैं ट्रंप के ये सलाहकार?

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भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है. 50 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ लागू होने के बाद भी अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों की ओर से भारत पर एक के बाद एक सख़्त बयान सामने आए हैं.

व्हाइट हाउस के आर्थिक सलाहकार केविन हैसेट ने भारत पर अपने बाज़ार न खोलने का आरोप लगाते हुए साफ़ कहा है, "अगर भारतीय नहीं झुकते, तो राष्ट्रपति ट्रंप भी नहीं झुकेंगे."

ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने तो रूस-यूक्रेन युद्ध को सीधे तौर पर "मोदी का युद्ध" करार दिया है और दावा किया है कि भारत सस्ता रूसी तेल ख़रीदकर इस युद्ध को फंड करने में रूस की मदद कर रहा है.

वहीं, अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भी भारत के ख़िलाफ़ आर्थिक पेनल्टी लगाने का समर्थन किया है, हालांकि उनका यह भी कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (अमेरिका) को "आख़िरकार साथ आना ही है."

दूसरी ओर, भारत ने अमेरिकी टैरिफ़ को "अनुचित और अव्यावहारिक" बताते हुए साफ़ कर दिया था कि वह अपने 140 करोड़ नागरिकों के हित में 'जहाँ से भी सस्ता तेल मिलेगा, ख़रीदना जारी रखेगा.'

भारत ने यह भी इशारा किया है कि रूस से तेल लेने पर ऐसे टैरिफ़ न तो चीन पर लगाए गए हैं और न ही यूरोपीय संघ पर.

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image Getty Images केविन हैसेट अमेरिका के नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल के डायरेक्टर हैं राष्ट्रपति ट्रंप के सलाहकार की चेतावनी

राष्ट्रपति ट्रंप के शीर्ष आर्थिक सलाहकार और नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल के डायरेक्टर केविन हैसेट ने भारत के रुख पर नाराज़गी जताई है.

हैसेट के मुताबिक़, "हम रूस पर ज़्यादा दबाव डालना चाहते हैं ताकि शांति समझौता हो और लाखों जानें बचें. भारत हमारे उत्पादों के लिए अपना बाज़ार खोलने पर अड़ियल रुख़ रखे हुए है.''

हैसेट ने व्यापार से जुड़ी बातचीत में आने वाले उतार-चढ़ाव पर धैर्य रखने की बात तो कही, लेकिन साथ ही चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा, "अगर भारतीय नहीं झुकते, तो मुझे नहीं लगता कि राष्ट्रपति ट्रंप भी झुकेंगे."

पीटर नवारो का आरोप: 'मोदी का युद्ध' image Bloomberg via Getty Images पीटर नवारो ने यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत पर लगाए आरोप

बुधवार को अमेरिकी टैरिफ़ की नई दरें लागू होने के कुछ ही घंटों बाद व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत के ख़िलाफ़ तीखा हमला बोला.

राष्ट्रपति ट्रंप के क़रीबी माने जाने वाले नवारो ने ब्लूमबर्ग टीवी पर बातचीत में यहां तक कह दिया कि रूस-यूक्रेन का युद्ध दरअसल "मोदी का युद्ध" है.

नवारो ने कहा, "भारत जो कर रहा है, उसकी वजह से अमेरिका में हर कोई नुकसान उठाता है. उपभोक्ता और कारोबार सब नुकसान में हैं, और मज़दूर भी इसलिए नुकसान उठाते हैं क्योंकि भारत के ऊँचे टैरिफ़ हमारी नौकरियां, कारखाने, कमाई और बेहतर वेतन के मौके कम कर देते हैं. और फिर टैक्स देने वालों को भी नुकसान होता है क्योंकि हमें 'मोदी के युद्ध' के लिए पैसा देना पड़ता है."

जब उनसे पूछा गया कि क्या उनका मतलब 'पुतिन का युद्ध' था, तो नवारो ने कहा, "मेरा मतलब 'मोदी का युद्ध' ही है, क्योंकि शांति का रास्ता कुछ हद तक नई दिल्ली से होकर जाता है."

उन्होंने इस इंटरव्यू में आगे कहा, "मुझे जो बात परेशान करती है, वह यह है कि भारतीय इस मुद्दे पर बहुत अहंकारी हैं. वे कहते हैं, 'अरे, हमारे यहाँ ऊँचे टैरिफ़ नहीं हैं. अरे, यह हमारी संप्रभुता है. हम जहाँ चाहें, जिससे चाहें तेल खरीद सकते हैं.' भारत, तुम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हो, ठीक है, वैसे ही बर्ताव करो."

हालांकि, अमेरिकी थिंक टैंक द विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशकमाइकल कुगलमैनयूक्रेन युद्ध पर अलग राय रखते हैं, वह कहते हैं,"मैं नहीं समझता कि किसी भी ग़ैर-पश्चिमी नेता ने यूक्रेन युद्ध का उतना साफ़ और बार-बार विरोध किया है जितना मोदी ने किया है."

रास्ता निकलने की उम्मीद है? image BBC

इस हफ्ते शुरू होने वाली व्यापार वार्ता रद्द होने के बावजूद, भारत के लिए रास्ता निकलने की उम्मीद बनी हुई है.

भारत अमेरिका का अहम रणनीतिक साझेदार है. विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के बयान, जिनमें भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर भरोसा जताया गया है, उसी दिशा की ओर इशारा करते हैं.

स्कॉट बेसेंट ने बुधवार को फ़ॉक्स बिजनेस से बातचीत में कहा था, "भारत और अमेरिका के रिश्ते काफी जटिल हैं. यहां कई स्तरों पर चीजें चल रही हैं. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था. इन देशों को आख़िरकार साथ आना ही है"

बेसेंट शुरू से ही भारत के ख़िलाफ़ सख़्त आर्थिक पेनल्टी लगाने के मुखर समर्थक रहे हैं. चैनल पर बात करते हुए उन्होंने इशारा किया कि भारत और अमेरिका के बीच हालिया तनाव की जड़ सिर्फ़ रूस से तेल खरीदना नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच ट्रेड डील (व्यापार समझौता) में हो रही असामान्य देरी ने भी माहौल ख़राब किया है.

बेसेंट ने कहा, '' भारत ने 'लिबरेशन डे' के तुरंत बाद ही टैरिफ़ को लेकर बातचीत शुरू कर दी थी, लेकिन अब तक समझौता नहीं हुआ. मुझे लगा था मई या जून तक डील हो जाएगी मैंने सोचा था कि भारत अमेरिका से ट्रेड डील करने वाले शुरुआती देशों में से होगा, लेकिन वह बातचीत को लगातार टालता रहा. इस बीच वह रूसी कच्चे तेल की ख़रीद कर काफ़ी मुनाफ़ा कमाता रहा.''

भारत क्या कर रहा है?

बेसेंट की टिप्पणी के बीच भारत में वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि अमेरिका से बातचीत पूरी तरह बंद नहीं हुई है.

मंत्रालय उद्योग जगत से मिलकर टैरिफ़ के असर को कम करने के रास्ते तलाश रहा है.

भारतीय अधिकारियों का मानना है कि हालात उतने ख़राब नहीं होंगे जितनी आशंका जताई जा रही है. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ सरकारी सूत्रों ने कहा है कि निर्यातकों को घबराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सरकार संभावित घाटे की भरपाई के लिए वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश में जुटी है.

भारत अपने निर्यात के लिए नए साझेदार देशों की ओर देख रहा है ताकि अमेरिकी बाज़ार में संभावित गिरावट का असर घटाया जा सके.

आख़िर एक के बाद एक ऐसे बयान क्यों आ रहे हैं? image BBC

अजय श्रीवास्तव दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के प्रमुख हैं.

बीबीसी संवाददाता अभय कुमार सिंह से बातचीत में अजय श्रीवास्तव का कहना है कि मौजूदा बयानबाज़ी की जड़ें अमेरिका-चीन व्यापार टकराव में हैं.

वह कहते हैं, "ट्रेड वॉर असल में अमेरिका और चीन के बीच थी. चीन ने साफ़ दिखा दिया कि सिर्फ़ ट्रेड रोक कर अमेरिका, चीन को नीचे नहीं ला सकता."

"फिर अमेरिका को एक 'फॉल गाय' यानी बलि का बकरा चाहिए था. वह 'फॉल गाय' उन्हें भारत में मिला."

"अमेरिका ने जल्दबाज़ी में भारत का नाम ले लिया. थोड़ा सोचते तो कोई और बहाना ढूँढ लेते, लेकिन बहाना चाहिए था."

श्रीवास्तव कहते हैं कि रोज़ नए बयानों से यह साबित करने की कोशिश होती है कि भारत ज़िम्मेदार है, जबकि वास्तविक संघर्ष पश्चिम, यूरोप और रूस के बीच है और यूक्रेन उसके बीच फँसा हुआ है.

वह कहते हैं, "असल बात यह है कि उन्हें भारत को पिन-डाउन करना था. छोटी वजहें अलग हैं, बड़ी वजह यह है कि अपने लोकल वोट बैंक को दिखाना है कि 'फॉल गाय' कौन है. यानी दुश्मन गढ़ना था और वह भारत को बना दिया गया."

भारत की भूमिका को अजय श्रीवास्तव ऊर्जा खरीद तक सीमित मानते हैं, जैसा अन्य देश भी करते हैं.

उनका कहना है, "भारत किसी भी तरह से युद्ध के लिए ज़िम्मेदार नहीं है. युद्ध पश्चिम, यूरोप और रूस के बीच का मसला है. यूक्रेन उनके बीच फँसा है. भारत तो सिर्फ़ तेल ख़रीद रहा है, जैसा और देश भी कर रहे हैं."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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