बिहार में महागठबंधन की जीत होती है तो विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक मुकेश सहनी उपमुख्यमंत्री होंगे.
गुरुवार को पटना में महागठबंधन के घटक दलों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के सीनियर नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ये घोषणा की.
अशोक गहलोत ने महागठबंधन की तरफ़ से तेजस्वी यादव को बिहार में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया है.
मुकेश सहनी ने क्या कहा?मुकेश सहनी ने महागठबंधन के दलों के नेताओं के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ''हम तीन साल से इस वक़्त का इंतज़ार कर रहे थे. बीजेपी ने हमारी पार्टी को तोड़ा, हमारे विधायकों को ख़रीदा. अब हम भाजपा को जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं ."
उन्होंने कहा, "हमने हाथ में गंगाजल लेकर प्रतिज्ञा ली थी. अब समय आ गया है. महागठबंधन के साथ मज़बूती से खड़े होकर हम बिहार में अपनी सरकार बनाएँगे और भाजपा को राज्य से बाहर कर देंगे."
में कहा था, ''बीजेपी सहयोगी पार्टी की मदद लेती है लेकिन काम हो जाने पर उन्हीं को निगल लेती है. हम बीजेपी के साथ काम करके देख चुके हैं. अब महागठबंधन के साथ मज़बूती से जुड़े हुए हैं.''
''बिहार में हम 60 विधानसभा सीटों पर लड़ेंगे. बिहार में 37 फ़ीसदी अति पिछड़ा समुदाय के वोटर हैं. इस आधार पर बिहार में अति पिछड़े के बेटे को उपमुख्यमंत्री होना चाहिए. ''
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मुकेश सहनी की मल्लाह जाति की आबादी गंगा किनारे के कई ज़िलों में फैली हुई है.
माना जा रहा है कि सहनी को महागठबंधन की ओर से उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा इसलिए किया गया क्योंकि इससे बिहार के ईबीसी (अति पिछड़ी जाति) वोटरों का एक बड़ा हिस्सा उसके पाले में आ सकता है.
राज्य में ईबीसी वर्ग में शामिल मल्लाह जाति के वोटरों की कई सीटों पर ख़ासी मौजूदगी है.
मुकेश सहनी ने एक बार 'वीआईपी'का मतलब समझाते हुए कहा था, "लोकतंत्र में वीआईपी वही होता है, जिसके पास अधिक लोग होते हैं.''
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपमुख्यमंत्री के रूप में उन्हें आगे कर महागठबंधन ने अति पिछड़ी और हाशिए की जातियों के वोटरों के बीच अपील मज़बूत करने की कोशिश की है.
हालाँकि कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे महागठबंधन का ग़लत फ़ैसला मानते हैं.
उनका कहना है कि मुकेश सहनी को इतनी तवज्जो देने से मुस्लिम वोटरों में निराशा हो सकती है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नलिन वर्मा कहते हैं, ''बिहार में मुसलमानों की आबादी 18 फ़ीसदी है. इनमें अधिकतर महागठबंधन के वोटर हैं. इससे मुस्लिम वोटरों में निराशा पैदा होगी. दरअसल, महागठबंधन की पार्टियों के लिए ये फ़ैसला दोधारी तलवार साबित हो सकता है. इस फ़ैसले से मुस्लिम वोटर आरजेडी और कांग्रेस से छिटक सकते हैं.''
नलिन वर्मा कहते हैं, ''मुकेश सहनी की किसी गठबंधन के साथ निष्ठा नहीं रही है. कभी वह महागठबंधन में रहते हैं और कभी एनडीए में चले जाते हैं. वह सौदेबाज़ी में आगे हैं. महागठबंधन के वोटरों में इस फ़ैसले का संदेश अच्छा नहीं गया है.''
BBC वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, ''मल्लाह समुदाय अति पिछड़ा वर्ग का हिस्सा है. तेजस्वी के मुख्यमंत्री और सहनी के उपमुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने से महागठबंधन को अति पिछड़ा वर्ग को एक साथ लाने में सफलता मिल सकती है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एनडीए की ओर से भाजपा ने लगभग 49 उम्मीदवार सवर्ण समाज से दिए हैं. ऐसे में पिछड़ा वर्ग एनडीए के बजाय महागठबंधन को तरजीह दे सकता है.''
गुप्ता कहते हैं, ''सहनी को उपमुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाना इसलिए भी जरूरी था कि वह चुनाव के बाद पाला बदलकर एनडीए के साथ भी जा सकते थे. अब महागठबंधन ने इस आशंका को दूर कर लिया है.''
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1981 में दरभंगा के एक मछुआरे परिवार में जन्मे मुकेश सहनी ख़ुद को 'सन ऑफ़ मल्लाह' कहते हैं.
19 साल की उम्र में, उन्होंने बिहार छोड़ दिया और मुंबई में सेल्समैन के रूप में काम किया शुरू किया.
फिर बॉलीवुड में सेट डिज़ाइनर के रूप में क़दम रखा.
उन्होंने शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म 'देवदास' और सलमान ख़ान की 'बजरंगी भाईजान' जैसी हिट फ़िल्मों के सेट डिज़ाइन में काम किया.
मुंबई में उनकी मुकेश सिने वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी थी.
सहनी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत एनडीएके साथ हुई थी.
लोकसभा चुनाव 2014 में वो बीजेपी के स्टार कैंपेनर थे.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने क़रीब 40 सभाओं में मुकेश को अपने साथ रखा था. उन्हें अपने साथ हर दिन हेलीकॉप्टर में ले जाते और दोनों संयुक्त सभा को संबोधित करते थे.
इसके बाद उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया था.
इसकी वजह पूछने पर मुकेश सहनी ने कहा था, ''तब अमित शाह ने हमसे वादा किया था कि निषाद समुदाय और उसमें बँटी 21 अन्य जातियों-उपजातियों के लिए विशेष आरक्षण की व्यवस्था करेंगे. 2015 वह वादों से मुकर गए. इसलिए हमने भी साथ छोड़ दिया."
2015 में उन्होंने निषाद विकास संघ की स्थापना की और बाद में 2018 में विकासशील इंसान पार्टी का गठन किया.
2015 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी ने नीतीश कुमार का समर्थन किया था. बाद में उनसे भी अलग हो गए.
उन्होंंने कहा था, "नीतीश कुमार ने भी हमारे साथ छल किया. उन्होंने भी हमारे समुदाय के आरक्षण और सुविधाओं के लिए शुरू में वादा किया लेकिन निभा नहीं पाए. अब तो वह ख़ुद बीजेपी के साथ हो गए हैं. इसलिए हमारी लड़ाई उनसे भी है."
2020 में सहनी एनडीए में शामिल हो गए. 2020 के बिहार चुनाव में, भाजपा ने अपने एनडीए कोटे से वीआईपी को 11 सीटें दी थीं. वीआईपी ने इन सीटों पर चुनाव लड़ा और चार सीटें जीतीं.
विधानसभा चुनाव 2020 में मुकेश सहनी हार गए थे लेकिन हार के बावजूद मुकेश सहनी को नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री (पशुपालन विभाग) बनाया गया. हालांकि, एक साल के भीतर, उनके एक विधायक की मौत हो गई और 2022 में बाक़ी तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए.
इस बीच उनकी पार्टी और बीजेपी के बीच दरार पड़नी शुरू हो गई. मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन किए बिना 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए. जिससे एनडीए में उनके ख़िलाफ़ नाराज़गी बढ़ गई और मुकेश सहनी को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया गया.
कुछ दिन बाद सहनी ने एनडीए को छोड़ दिया और अप्रैल 2024 में महागठबंधन में वापस लौट गए.
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