"डीसीपी साहब हमारे सामने खड़े हैं, मैं आप सबके बिहाफ़ (की ओर से) पर कह रहा हूं, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं, लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे, अगर रास्ते खाली नहीं हुए तो."
ये वो बयान है जिसे दुनियाभर ने देखा था, ये वो बयान है जिसके ठीक बाद दिल्ली तीन दिनों तक जलती रही. दंगा भड़का था, 53 लोगों की मौत हुई, 500 से ज्यादा घायल हुए. 700 से ज्यादा एफआईआर हुई, 2600 से ज्यादा गिरफ्तारी. लेकिन इस बयान के देने वाले पर मुकदमा चल सके इसके लिए आदेश देने में पांच साल लग गए.
सवाल यही है कि जहां सोशल मीडिया पर मीम पोस्ट करने पर पुलिस एफआईआर लिख लेती है, जहां थूक फेंकने के झूठे आरोप लगाकर किसी के घर पर बुलडोजर चलाया जाता है, वहां भड़काऊ भाषण पर एक्शन क्यों नहीं हुआ? एफआईआर दर्ज होनी चाहिए ये कहने में अदालतों को पांच साल लग गए.
इस वीडियो में हम बताएंगे कि 2020 में कैसे कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर होते-होते एक जज साहब का तबादला हो जाता है. इस वीडियो में हम ये भी बताएंगे कि कपिल मिश्रा के खिलाफ कितनी शिकायतें हुईं, और इन शिकायतों का क्या हुआ? साथ ही ये भी बताएंगे कि और किन मामलों में कानून मंत्री को अदालत ने कानून का पाठ पढ़ाया है?
"कपिल मिश्रा के खिलाफ कॉग्नीजेबल ऑफेंस का मामला"दिल्ली दंगे के 5 साल बाद दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने कपिल मिश्रा के खिलाफ दंगों में कथित भूमिका को लेकर एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा है और आगे की जांच करने का निर्देश दिया. Additional Chief Judicial Magistrate वैभव चौरसिया ने दिल्ली के यमुना विहार के रहने वाले मोहम्मद इलियास की शिकायत मंजूर कर ली, जिन्होंने मिश्रा के साथ-साथ दयालपुर थाने के तत्कालीन स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) और बीजेपी विधायक मोहन सिंह बिष्ट और पार्टी के पूर्व विधायक जगदीश प्रधान समेत पांच और लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी.
अर्जी मंजूर करते हुए जज ने कहा कि कपिल मिश्रा के खिलाफ संज्ञेय अपराध यानी कॉग्नीजेबल ऑफेंस का मामला बनता है. क्रीमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC 1973) के शेड्यूल 1 के मुताबिक हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, अपहरण, दंगा करने जैसे अपराध को संज्ञेय अपराध (कॉग्नीजेबल ऑफेंस) की लिस्ट में रखा गया है.
अदालत ने एफआईआर का आदेश तब जाकर दिया है जब दिल्ली पुलिस कपिल मिश्रा को बार-बार क्लीन चिट दे रही थी. दरअसल, फरवरी 2025 में जब इलियास की शिकायत पर सुनवाई हुई तब Special Public Prosecutor अमित प्रसाद ने अदालत को बताया था कि दंगों के पीछे की बड़ी साजिश में मिश्रा की भूमिका की पहले ही जांच की जा चुकी है और उनके खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया है.
फिर सवाल यही तो है कि पुलिस इसी तरह के जांच का रास्ता बाकी आरोपियों पर क्यों नहीं अपनाती है? ऐसा ही था तो उमर खालिद से लेकर कई एक्टिविस्ट UAPA के तहत करीब पांच साल से जेल में हैं उन्हें भी बिना एफआईआर, बिना गिरफ्तार किए पूछताछ, बातचीत, जान-पहचान कर लेते? अगर सबूत मिले तो फिर जेल नहीं तो क्लीन चिट.
FIR के लिए लंबी कानूनी लड़ाईये जान लीजिए कि इलियास की शिकायत पर जो एफआईआर करने की बात अदालत ने की है वो इतनी आसानी से नहीं हुआ है. इलियास को पुलिस से लेकर अदालत तक जाने की लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. इसकी कीमत चुकानी पड़ी है.
स्क्रोल को दिए इंटरव्यू में इलियास ने कहा था कि पुलिस ने उन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया जिन्हें मैंने देखा था और नाम बताए थे और मुझे बंद करने की धमकी दी." इलियास तीन बार पुलिस के पास गए, लेकिन कोई एक्शन नहीं हुआ.
इलियास की तरफ से वकील महमूद प्राचा केस लड़ रहे हैं. वो बताते हैं कि नवंबर 2020 में दायर इलियास की याचिका सात अलग-अलग जजों के सामने 24 बार लिस्ट की गई. फिर जाकर साल 2024 में अदालत ने निर्देश दिया कि यह आवेदन सांसद/विधायक अदालत में दायर किया जाए. तब से, सांसद/विधायक अदालत में इस मामले को दो अलग-अलग मजिस्ट्रेटों के सामने 13 और बार लिस्ट किया गया.
आप खुद सोचिए एक एफआईआर के लिए इतनी लंबी लड़ाई? आखिर क्यों इतना वक्त लगाया गया?
केस में देरी पर प्राचा कहते हैं, "आरोपी के खिलाफ सबूतों को खत्म करने के लिए पांच साल का समय काफी है वे संभावित सबूतों को हटा सकते हैं. इसके अलावा, सीसीटीवी फुटेज या कॉल डिटेल जैसे तकनीकी सबूत भी खत्म हो सकते हैं."
जब हर्ष मंदर ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजाइलियास ही नहीं, एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने तो दंगे के दौरान 26 फरवरी, 2020 को दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मिश्रा और बाकी बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. लेकिन यहां कहानी में कई ट्विस्ट आए.
तब दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह ने सुनवाई शुरू की. ये याचिका आपत्तिजनक बयान देने वाले बीजेपी के तीन नेताओं- कपिल मिश्रा, बीजेपी सांसद परवेश वर्मा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को लेकर थी.
इस दौरान बिना पार्टी बने ही केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली पुलिस की तरफ से अदालत में पेश हुए. तब उन्होंने कोर्ट से कहा, ''बीजेपी नेताओं के कथित हेट स्पीच को लेकर गिरफ़्तारी करना अभी जरूरी नहीं है. इसके लिए कल चीफ जस्टिस का इंतजार किया जा सकता था.''
इसके जवाब में जस्टिस मुरलीधर ने तुषार मेहता से पूछा था, "क्या दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होना जरूरी मुद्दा नहीं लगता आपको? दिल्ली की हालत बेहद खराब है. हमें ये तय करना होगा कि क्या अति आवश्यक है."
तब अदालत ने पूछा था कि "सैकड़ों लोगों ने वीडियो देखा है, क्या अब भी ये मुद्दा जरूरी नहीं लगता?''
तब तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने वीडियो नहीं देखा है. जस्टिस मुरलीधर ने ये सवाल कोर्ट में मौजूद पुलिस अधिकारी से भी पूछा, जिसपर अधिकारी ने कहा कि उसने कपिल मिश्रा का वीडियो नहीं देखा है. फिर क्या था अदालत में कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर के भाषणों की क्लिप चलाई गई.
फिर भी सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि एफआईआर रजिस्टर करने का ये सही समय नहीं है.
इस बात पर जस्टिस मुरलीधर ने पूछा था, ''सही समय कौन सा होगा, ये शहर जल रहा है?''
इसका जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "स्थिति अनुकूल होने पर एफआईआर दर्ज की जाएगी."
जस्टिस मुरलीधर का ट्रांसफरतब जस्टिस मुरलीधर ने अपने आदेश में कहा था कि कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और अभय वर्मा का भाषण IPC की धारा 153 ए और 153 बी के तहत घृणास्पद भाषण की परिभाषा में आता है. धारा 153 ए अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से जुड़ी है और धारा 153 बी राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने से.
लेकिन फिर जो हुआ उसके बाद कई सवाल उठे. अदालत में वीडियो चलने के कुछ घंटे बाद देर रात एक आदेश जारी हुआ और जस्टिस मुरलीधर का ट्रांसफर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया.
सरकार का तर्क था कि कोलेजियम की सिफारिश पर ये फैसला पहले ही लिया जा चुका था, इसका केस से कोई लेना देना नहीं है.
लेकिन अभी एक और ट्विस्ट बाकी था. अगले दिन इस याचिका की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस डी.एन पटेल की कोर्ट में की गई और फिर हुआ वही जो सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से पहले कहा था- सही वक्त नहीं है. फिर तारीख पर तारीख..
हर्ष मंदर ने हमें बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी वो गए, लेकिन उल्टा उनके ऊपर ही हेट स्पीच को लेकर कार्रवाई की बात उठने लगी.
इसी बीच जुलाई 2020 में दिल्ली पुलिस ने अदालत के सामने एक हलफनामा दायर किया कि उसे इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर या परवेश वर्मा ने दंगों को भड़काया या उनमें हिस्सा लिया था.
फिर क्या था 27 जुलाई, 2020 को मंदर ने हाईकोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली. और लोअर कोर्ट की अदालत में जाने का विकल्प चुना. जनवरी 2021 में हर्ष मंदर ने पटियाला हाउस कोर्ट में मजिस्ट्रेट की अदालत में धारा 156(3) के तहत एक आवेदन दायर किया, वो आवेदन अभी भी लंबित है. इसे अब तक पांच अलग-अलग मजिस्ट्रेटों के सामने 25 बार लिस्ट किया जा चुका है.
कोर्ट ने इलियास की फरियाद तो सुन ली, लेकिन इन 5 सालों में और भी कई लोग थे जिन्होंने कपिल मिश्रा को लेकर शिकायत की. लेकिन उनकी नहीं सुनी गई.
कपिल मिश्रा का 'KYM'चलिए कपिल मिश्रा का KYM यानी Know your MLA करते हैं, और जानते हैं कि इनके भड़काऊ बयानों का स्कोर क्या है.
दरअसल, साल 2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव था तब कपिल मिश्रा ने ‘दिल्ली में छोटे-छोटे पाकिस्तान बने’ और ‘शाहीन बाग में पाकिस्तान की एंट्री’ जैसी बात कही थी. इसके अलावा एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि चुनाव के दिन 8 फरवरी को ‘दिल्ली की सड़कों’ पर ‘भारत बनाम पाकिस्तान’ मुकाबला होगा. जिसके बाद चुनाव आयोग के अधिकारी की शिकायत पर कपिल मिश्रा के खिलाफ आदर्श आचार संहिता और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन करने को लेकर FIR दर्ज की गई थी.
जिसके बाद कपिल मिश्रा चाहते थे कि दिल्ली हाई कोर्ट हेट स्पीच केस में ट्रायल की कार्यवाही रोक दे, लेकिन अदालत ने स्टे ऑर्डर देने से इनकार कर दिया.
7 मार्च 2025 को कोर्ट ने इस मामले पर कहा है कि कपिल मिश्रा ने 2020 में ‘धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने’ और ‘नफरत फैलाने’ के लिए ‘पाकिस्तान शब्द’ को बहुत कुशलता से गढ़ा था. ये भी कहा गया कि भारत में चुनावों के दौरान वोट हासिल करने के लिए सांप्रदायिक भाषण देने का चलन हो गया है.
कपिल मिश्रा ही नहीं, पुलिस भी सवालों के घेरे में है. एक नहीं कई केस में अदालत ने पुलिस को फटकार लगाई है.
कोर्ट ने क्या कहा?अब वापस पांच साल के लंबे वक्त में पुलिस की कार्रवाई और कोर्ट के स्टेटमेंट पर लौटते हैं.
राउज एवेंन्यू कोर्ट ने कहा कि वह दिल्ली पुलिस की इस बात पर विश्वास नहीं कर सकती कि कपिल मिश्रा की साजिश से जुड़े मामले में जांच की गई थी.
कोर्ट ने कहा कि मिश्रा का बयान, एक अल्टीमेटम यानी चेतावनी थी. इसके अलावा, कोर्ट ने पुलिस को डीसीपी वेद प्रकाश सूर्य की भी जांच करने का आदेश दिया, क्योंकि उनका यह बयान कि "यदि प्रदर्शन नहीं रुका तो लोग मारे जाएंगे," इस ओर इशारा करता है कि "उन्हें कुछ ऐसा पता है जो न्यायपालिका को नहीं पता.
कोर्ट के स्टेटमेंट से पुलिस की जांच पर गंभीर सवाल उठते हैं. जैसे कि जो पुलिस 700 से ज्यादा एफआईआर दर्ज कर सकती है वो कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर करने से क्यों पांच साल तक बचती रही? सवाल ये भी है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती है तब तक कपिल मिश्रा अपना पद छोड़ेंगे? सवाल ये भी है कि इतने साल बाद एफआईआर दर्ज से कितना इंसाफ होगा?
You may also like
United Airlines flight returns to Denver, makes emergency landing due to engine fire caused by 'rabbit strike'
Darts star suddenly disappears leaving other players 'stunned' at Players Championships
Germany could be forced to abandon plans for Taurus missiles in Ukraine without UK backing
South Africa's health department urges vigilance amid rising malaria cases
UEFA make statement after VAR overturn in Real Madrid vs Arsenal amid Declan Rice fury